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साधु और लेश्यापुलाकस्योत्तरास्तिस्रो लेश्या
भवन्ति । बकुशप्रतिसेवनाकुशीलयोः सर्वा षडपि। कषायकुशीलस्य परिहार विशुद्ध स्तिस्र उत्तराः। सूक्ष्मसंपरायस्य निम्रन्थस्नातकयोश्च शुक्लेव केवला भवन्ति । अयोगः शैलेशी प्रतिपन्नोऽलेश्यो भवन्ति ।
-तत्व० अ६ । सू ४६ भाष्य अर्थात् पुलाक में तीन शुभ लेश्याए होती है। बकुश और प्रतिसेवना कुशील में छहों लेश्याएं होती है। परिहार विशुद्ध चारित्र तथा कषायकुशील में तीन विशुद्ध लेश्या होती है।
सूक्ष्म संपरायचारित्र तथा निग्न थ व स्नातक में एक शुक्ललेश्या होती है। अयोगी-शैलेशी में कोई लेश्या नहीं होती है।
___ अस्तु आचार्य विनोवाभावे के शब्दों में-जैन धर्म चिंतन में अनाक्रमक, आचरण में साहिष्णु व प्रचार-प्रसार में संयमित है।" काका कालेलकर का मानना था- जैन धर्म में विश्व धर्म बनने की क्षमता है।
प्रेक्षा शब्द रचना की दृष्टि से 'प्र' उपसर्ग और ईक्ष धातु के संयोग से बना है। इसका तात्पर्य है-गहराई से देखना । प्रेक्षा के प्रयोग व्यक्ति की चित्तशुद्धि एवं व्यक्तित्व के सर्वाङ्गीण विकास के लिए अत्यन्त उपयोगी है।
____ मानसिक स्तर पर प्रेक्षा में मस्तिष्क की एकाग्रता बढ़ती है। मन की शक्ति का विकास होता है। भावविशुद्धि होने से लेश्या-विशुद्धि होती है। चेतना में पवित्र भावना के अंकुर फूटते हैं। भय, घृणा, क्रोध, ईर्ष्या, मोह और यौनविकृति आदि बुराईयां मूल रूप से समाप्त हो जाती है।
प्रेक्षाध्यान में कायोत्सर्ग, श्वासप्रेक्षा, शरीर प्रेक्षादि विविध प्रयोग है। शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए विधेयात्मक भावधारा एवं व्यक्तित्व का विकास तथा निषेधात्मक भावधारा एवं व्यक्तित्व से मुक्ति। जो भावधारा ( लेश्याविशुद्धि ) आचरण या व्यवहार को नियंत्रित करते हैं। श्रेष्ठ है।
__ जीवन विज्ञान का उद्देश्य है-भावपरिष्कार और व्यवहार परिवर्तन के माध्यम से व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना । वैज्ञानिक आधारों पर स्वास
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