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'४५ भावलेश्या की स्थिति
लेश्या - कोश
मुहुत्तद्ध तु जहन्ना, तेत्तीसा सागरा मुहुत्तऽहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा कण्हलेसा ॥ मुहुत्तद्ध तु जहन्ना, दस उदही पलियमसंखभागमन्महिया । satar होइ ठिई, नायव्वा नीललेसाए ॥ मुहुत्तद्ध तु जहन्ना, तिष्णुदही पलियमसंखभागमब्भहिया | कोसा होइ ठिई, नायव्वा काऊले साए ।
पहले साए ||
मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, दोष्णुदही पलियमसंखभागमम्भहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा तेलेसाए ॥ मुहुत्तद्ध तु जहन्ना, दस होंति य सागरा मुहुत्त हिया * । उकोसा होइ ठिई, नायव्वा मुहुत्तद्ध तु जहन्ना, तेत्तीसं सागरा उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा एसा खलु लेसाणं, ओहेण ठिई उ वष्णिया होइ। * पाठान्तर — दसउदही होइ मुहुत्तमब्भहिया ।
मुहुत्तहिया |
सुक्कलेसाए ॥
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- उत्त० अ ३४ | गा ३४ से ४० । पृ० १०४७ सामान्यतः भावलेश्या की स्थिति द्रव्यलेश्या के अनुसार ही होनी चाहिये अतः उपरोक्त पाठ द्रव्य और भावलेश्या दोनों में लागू हो सकता है । नारकी और देवता की भावलेश्या में परिणमन हो तो वह केवल आकारभावमात्र, प्रतिबिम्बभावमात्र होना चाहिये क्योंकि वहाँ मूल की द्रव्यलेश्या का अन्य लेश्या में परिणमन केवल आकारभावमात्र, प्रतिबिम्बमात्र होता है । अतः नारकी और देवता में यदि 'भाव परावत्तिए पुण सुर नेरियाणं पि छल्लेस्सा" होती है वह प्रतिबिम्ब भावमात्र होनी चाहिये ।
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- ४६ भावलेश्या और भाव
४६. १ जीवोदय निष्पन्न भाव
(क) से किं तं जीवोदयनिफन्ने ? अणेगविहे पन्नत्ते, तंजा-नेरइए तिरिक्खजोणिए मणुस्से देवे, पुढविकाइए जाव तसकाइए, कोहकसाइ जाव लोभकसाइ, इत्थीवेयए पुरिसवेयए नपुंसगवेयए, कण्हलेस्से जाव सुक्कलेस्से, मिच्छादिट्ठी सम्मदिट्ठी सम्ममिच्छादिट्ठी, अविरए, असण्णी, अण्णाणी, आहारए, छउमत्थे, सजोगी, संसारत्थे, असिद्धे सेतं जीवोदय निफन्ने |
- अणुओ० सू १२६ । पृ० ११११
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