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________________ लेश्या - कोश अब प्रश्न उठता है कि लेश्या और कषाय जब सहभावी होते हैं तब एक दूसरे पर क्या प्रभाव डालते हैं । कई आचार्य कहते हैं कि लेश्या - परिणाम कषाय परिणाम से अनुरंजित होते हैं- २७४ कषायोदयानुरंजिता लेश्या । कषाय और लेश्या के पारस्परिक सम्बन्ध में अनुसंधान की आवश्यकता है। *६६१७ लेश्या और योग -: लेश्या और योग में अविनाभावी सम्बन्ध है । जहाँ योग है सलेशी है वह सयोगी है तथा जो अलेशी है वह अयोगी भी है। सलेशी है तथा जो अयोगी है वह अलेशी भी है। कई आचार्य योग- परिणामों को ही लेश्या कहते हैं । यत उक्त प्रज्ञापनावृत्तिकृता : योगपरिणामो लेश्या, कथं पुनर्योगपरिणामो लेश्या ?, यस्मात् सयोगी केवली शुक्लश्यापरिणामेन विहृत्यान्तर्मुहूर्त्ते शेषे योगनिरोधं करोति ततोऽयोगीत्वमलेश्यत्वं च प्राप्नोति अतोऽवगम्यते 'योगपरिणामो लेश्येति, स पुनर्योगः शरीरनामकर्मपरिणतिविशेषः, यस्मादुक्तम्- “कर्म हि कार्मणस्य कारणमन्येषां च शरीराणामिति,” तस्मादौदा रिकादिशरीरयुक्तस्यात्मनो वीर्यपरिणतिविशेषः काययोगः, तथौदारिकवैक्रियाहार कशरीरव्यापाराहतवाग् द्रव्य समूहसाचिव्यात् जीवव्यापारो यः स वाग्योगः, तथौदा रिकादिशरीरव्यापाराहृतमनोद्रव्यसमूहसाचिव्यात् जीवव्यापारो यः स मनोयोग इति, ततो तथैव कायादिकरणयुक्तस्यात्मनो वीर्य - परिणतिर्योग उच्यते तथैव लेश्यापीति । - ठाण० स्था १ | सू ५१ | टीका प्रज्ञापना के वृत्तिकार कहते हैं : योग - परिणाम ही लेश्या है। क्योंकि सयोगी केवली शुक्ललेश्या परिणाम में विहरण करते हुए अवशिष्ट अन्तर्मुहूर्त में योग का निरोध करते हैं तभी वे अयोगीत्व और अलेश्यत्व को प्राप्त होते हैं । अतः यह कहा जाता है कि योग - परिणाम ही लेश्या है । वह योग भी शरीर नामकर्म की विशेष परिणति रूप ही है। क्योंकि कर्म कार्मण शरीर का कारण है। और कार्मण शरीर अन्य शरीरों का । इसलिए औदारिक आदि शरीर वाले आत्मा की वीर्य परिणति विशेष ही काययोग है। इसी प्रकार औदारिकवै क्रियाहारक शरीर व्यापार से ग्रहण किये गए वाकू द्रव्यसमूह के सन्निधान से जीव का जो व्यापार होता है वह वाकू योग है । इसी तरह औदारिकादि शरीर व्यापार से गृहीत मनोद्रव्य समूह के सन्निधान से Jain Education International For Private & Personal Use Only वहाँ लेश्या है। जो जीव जो जीव सयोगी है वह www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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