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________________ लेश्या -कोश शुभलेश्याः, एतच्च विशेषणं चन्द्रमसः प्रति, तेन नातिशीततेजसः किन्तु सुखोत्पादहेतुपरमलेश्याका इत्यर्थः, मन्दलेश्या, एतच्च विशेषणं सूर्यान् प्रति, तथा च एतदेव व्याचष्टे - 'मन्दातपलेश्याः' मन्दा नात्युष्णस्वभावा आतपरूपा लेश्या - रश्मि संघातो येषां ते तथा पुनः कथम्भूताश्चन्द्रादित्याः ? इत्याह- 'चित्रान्तरलेश्याः' चित्रमन्तरं लेश्या च येषां ते तथा, भावार्थश्चास्य पदस्य प्रागेवोपदर्शितः, ['चित्रान्तरलेश्याकाः' चित्रमन्तरं लेश्या च प्रकाशरूपा येषां ते तथा, तत्र चित्रमन्तरं चन्द्राणां सूर्यान्तरितत्वात् सूर्याणां चन्द्रान्तरितत्वात्, चित्रा लेश्या चन्द्रमसां शीतरश्मित्वात् सूर्याणामुष्णरश्मित्वात्'- सू १७७ टीका ] त इथम्भूताश्चन्द्रादित्याः परस्परमवगाढाभिर्लेश्याभिः तथाहि-- चन्द्रमसां सूर्याणां च प्रत्येकं लेश्या योजनशतसहस्रप्रमाण विस्तारा, चंद्रसूर्याणां च सूचीपङ्क्त्या व्यवस्थितानां परस्परमन्तरं पंचाशद् योजनसहस्राणि, ततश्चन्द्रप्रभासम्मिश्राः सूर्यप्रभाः सूर्यप्रभासम्मिश्राश्च चन्द्रप्रभाः इतीत्थं परस्परमवगाढाभिर्लेश्याभिः । 'कूटानीव' - पर्वतोपरिव्यवस्थितशिखराणीव 'स्थानस्थिताः सदैवैकत्र स्थाने स्थितास्तान् तान् प्रदेशान् स्वस्वप्रत्यासन्नान् उद्योतयन्ति अवभासयन्ति तापयन्ति प्रकाशयन्ति । - जीवा० प्रति ३ । उ २ । सू १७६ टीका . २६४ मनुष्य क्षेत्र के बाहर जो चन्द्र-सूर्य ग्रह-नक्षत्र - तारा हैं वे ज्योतिषी देव ऊर्ध्वोत्पन्न हैं यावत् दिव्य भोगोपभोगों को भोगते हुए विचरते हैं यावत् शुभलेश्या शीतलेश्या, मन्दलेश्या, मन्दातपलेश्या तथा चित्रान्तरलेश्या वाले हैं। वे शीर्ष स्थान में स्थित रहते हैं तथा उनकी लेश्याएँ परस्पर में अवगाहित होकर मनुष्य क्षेत्र के बाहर के प्रदेश को सर्वतः चारों तरफ से अवभासित, उद्योतित, आतप्त तथा प्रभासित करती हैं। श्या विशेषणों सहित ज्योतिषी देवों के सम्बन्ध में ऐसे पाठ अनेक स्थलों पर मिलते हैं । हमने उनकी लेश्याओं की भिन्नता तथा विशेषताओं को दिखाने के लिए उनमें से एक पाठ ग्रहण किया है । टीकाकार के अनुसार चन्द्रमा की लेश्या को शुभलेश्या कहा गया है। टीकाकार ने अन्यत्र 'सुइलेस्सा' का सुखलेश्या अर्थात् सुखदायक लेश्या अर्थ भी किया है । यह शुभलेश्या न अधिक शीतल होती है, न अधिक तप्त | लेश्या होती है । सुख उत्पन्न करने वाली वह परम 'सीयलेस्सा' का टीकाकार ने कोई अर्थ नहीं किया है 1 सूर्य की लेश्या को मन्द विशेषण दिया जाता है । अतः सूर्य की लेश्या को मन्दलेश्या कहा गया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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