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________________ लेश्या-कोश २५१ बालमरणके समय यदि जीव कृष्णादि लेश्या में अविशुद्ध रूप में अवस्थित रहे तो उसका वह मरण स्थितलेश्य बालमरण कहलाता है, यथा-कृष्णलेशी जीव मरणके समय कृष्ण लेश्या में अवस्थित रहकर कृष्णलेशी नारकी में उत्पन्न होता है। बालमरण के समय यदि जीव लेश्या में संक्लिश्यमान-कलुषित होता रहता है तो उसका वह मरण संक्लिष्टलेश्य बालमरण कहलाता है, यथा-नीलादिलेशी जीव मरण के समय लेश्यास्थानों में संक्लिश्यमान होते-होते कृष्णलेश्या में उत्पन्न होता है। बालमरण के समय यदि जीव की लेश्या के पर्याय विशुद्धि को प्राप्त हो रहे हों तो उसका वह मरण पर्यवजातलेश्य बालमरण कहलाता है, यथा-कृष्णलेशी जीव मरण के समय लेश्या के पर्यायों में विशुद्धत्व को प्राप्त होता हुआ नील-कापोतादि लेश्या में उत्पन्न होता है। । यद्यपि मूल सूत्र में पंडितमरण के भी स्थितलेश्य, असं क्लिष्टलेश्य तथा पर्यवजातलेश्य तीन भेद बताये गये हैं ; तथापि टीकाकार का कथन है कि पंडितमरण में लेश्या की संक्लिष्टता- अविशुद्धि सम्भव नहीं है, वहाँ असंक्लिष्टता-विशुद्धि ही होती है तथा पर्यवजातलेश्य पंडितमरण में भी लेश्या के पर्यायों की विशुद्धि ही होती है। अतः वास्तव में लेश्या की अपेक्षा से पंडितमरण के दो ही भेद करने चाहियें। असं क्लिष्टलेश्य भेद को पर्यवजातलेश्य भेद में शामिल कर लेना चाहिये। यद्यपि मूल पाठ में बालपंडितमरण के भी स्थितलेश्य, असं क्लिष्टलेश्य तथा अपर्यवजातलेश्य तीन भेद किये गये हैं ; तथापि टीकाकार का कथन है कि बालपंडितमरण का एक स्थितलेश्य भेद ही करना चाहिये ; क्योंकि बालपंडितमरण के समय में न तो लेश्या की अविशुद्धि ही होती है और न विशुद्धि, कारण उसमें बालत्व अंर पंडितत्व का सम्मिश्रण है। अतः वहाँ असं क्लिष्टलेश्य तथा अपर्यवजातलेश्य भेदों का निषेध किया गया है। सुधीजन इस पर गम्भीर चिन्तन करें । '१७ लेश्या परिमाणों को समझाने के लिये दृष्टान्त :-- ६७.१ जम्बू खादक दृष्टान्त (क) जह जंबुतरुवरेगो, सुपक्कफलभरियनमियसालग्गो । दिट्ठो छहिं पुरिसेहिं, ते बिती जंबु भक्खेमो ।। किह पुण ? ते बेंतेक्को, आरुहमाणाण जीव संदेहो । तो छिदिऊण मूले, पाडेगुं ताहे भक्खमो ॥ बिति आह एदहेणं, किं छिणेणं तरूण अम्हं ति ? साहामहल्लछिंदह, तइओ बेंती पसाहाओ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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