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लेश्या-कोश
२०६ सदा अनेकों होते हैं । इनके सिवाय अन्यों में तीन भंग होते हैं। यथा-(१) सर्व आहारक, (२) अनेक आहारक तथा एक अनाहारक, (३) अनेक आहारक, अनेक अनाहारक होते हैं। कृष्णलेशी, नीललेशी तथा कापोतलेशी जीव ( बहुवचन ) को भी सलेशी जीव ( बहुवचन ) की तरह जानना। तेजोलेशी पृथ्वीकायिक, अपकायिक तथा वनस्पतिकायिक जीव (बहुवचन ) में छः भंग होते हैं । यथा-(१) सर्व आहारक, (२) सर्व अनाहारक, (३) एक आहारक तथा एक अनाहारक, (४) एक आहारक तथा अनेक अनाहारक, (५) अनेक आहारक तथा एक अनाहारक, (६) अनेक आहारक तथा अनेक अनाहारक । अवशेष तेजोलेशी जीव (बहुवचन) के तीन भंग जानना। पद्मलेशी, शुक्ललेशी जीवों-औधिक जीव, तीर्यच पंचेन्द्रिय, मनुष्य, वैमानिक देवों में तीन भंग जानना।
अलेशी जीव, अलेशी मनुष्य, अलेशी सिद्ध ( एकवचन तथा बहुवचन ) आहारक नहीं हैं, अनाहारक होते हैं।
८४ सलेशी जीव के मेद :'८४.१ दो भेद :
सलेसे णं भते ! सलेस्सेत्ति पुन्छा ? गोयमा! सलेस्से दुविहे पन्नत्ते। तंजहा-अणाइए वा अपज्जवसिए, अणाइए वा सपज्जवसिए ।
-पण्ण० प १८ । द्वा ८। सू ६ । पृ० ४५६ सलेशी जीव सलेशीत्व की अपेक्षा से दो प्रकार के होते हैं—(१) अनादि अपर्यवसित, तथा (२) अनादि सपर्यवसित । ८४२ छः भेद :
कृष्णलेश्या की अपेक्षा सलेशी जीव के छः भेद भी होते हैं । यथा --कृष्णलेशी, नीललेशी, कापोतलेशी, तेजोलेशी, पद्मलेशी तथा शुक्ललेशी।
८५ सलेशी क्षुद्रयुग्म जीव :--
[युग्म शब्द से टीकाकार अभयदेव सूरि ने 'राशि' अर्थ लिया है—'युग्मशब्देन राशयो विवक्षिताः'। राशि की समता-विषमता की अपेक्षा युग्म चार प्रकार का होता है, यवाकृतयुग्म, त्र्योज, द्वापरयुग्म तथा कल्योज । जिस राशि में चार का भाग देने से शेष चार
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