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लेश्या - कोश
कण्हलेस्सभव सिद्धियअपज्जत्तसुहुमपुढविकाइया णं भंते! कइ कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ ? एवं एएणं अभिलावेण जहेव ओहिउद सए तहेव जाव वेदेंति ।
कइविहा णं भंते! अनंतरोववन्नगा कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिंदिया पन्नत्ता ? गोयमा ! पंचविहा अनंतरोववन्नगा० जाव वणस्सइकाइया । अनंतरोववन्नगा कण्हलेस्सभवसिद्धीयपुढविकाइया णं भंते! कइविहा पन्नत्ता ? गोयमा ! दुविहा पन्नत्ता, तंजहा - सुहुमपुढविकाइया --- एवं दुयओ भेदो ।
अनंतरोववन्नग कण्हलेस्सभव सिद्धिय सुहुम पुढ विकाइया णं भंते ! कम्मप्पगडीओ पन्नताओ ? एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिओ अनंतरोववन्नगउछ सओ तव जाव वेदेति । एवं एएणं अभिलावेणं एक्कारस वि उद्दसगा तहेव भाणियव्वा जहा ओहियसए जाव 'अचरिमो' त्ति ।
जहा कण्हलेस्सभवसिद्धिएहिं सयं भणियं एवं नीललेस्सभवसिद्धिएहि वि सयं भाणियत्वं ।
एवं काउलेस्सभवसिद्धिएहि वि सयं ।
कृष्णलेशी भवसिद्धिक एकेन्द्रिय के जैसे कृष्णलेशी एकेन्द्रिय के ग्यारह 'कृष्णलेशीभवसिद्धिक' कहना |
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- भग० श ३३ । उ ६ से ८ । पृ० ६१५-१६ सम्बन्ध में भी ग्यारह उद्देशक वैसे ही कहने उद्देशक कहे, लेकिन ' कृष्णलेशी' के स्थान में
'नीललेशी' के स्थान में 'नीललेशीभवसिद्धिक' कहना । 'कापोतलेशी' के स्थान में 'कापोतलेशीभवसिद्धिक' कहना ।
७८३ सलेशी अभवसिद्धिक एकेन्द्रिय और कर्मप्रकृति का सत्ता- बंधन-वेदन : --
asविहा णं भंते! अभवसिद्धिया एगिंदिया पत्नत्ता ? गोयमा ! पंचविहा अभवसिद्धिया एगिंदिया पन्नत्ता, तंजहा- पुढविकाइया, जाव वणस्सकाश्या । एवं जहेव भवसिद्धियसयं भणियं, [ एवं अभवसिद्धियसयं ] नवरं नव उद्दे सगा चरम अचरमउद्द सगवज्जा, सेसं तहेव । एवं कण्हलेस्सअभवसिद्धियएगिंदियस्यं वि । नीललेस अभव सिद्धियएगिदिएहि वि सयं । काऊलेस्सअभवसिद्धियसयं, एवं चत्तारि वि अभवसिद्धियसयाणि, नव नव उद्देसगा भवंति एवं एयाणि बारस एगिदिययाणि भवंति ।
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कृष्णलेशी अभवसिद्धिक एकेन्द्रिय का शतक उसी प्रकार कहना,
- भग० श ३३ । श ६ से १२ | पृ० ६१६
जिस प्रकार
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