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लेश्या - कोश
पापकर्म तथा अष्टकर्मों का समर्जन तथा समाचरण आठ विकल्पों में किया था । पापकर्म तथा अष्टकर्म के अलग-अलग नौ दंडक कहने ।
अनंतरोववन्नगाणं भंते! नेरइया पावं कम्मं कहिं समज्जिणिसु, कहिं समायरिंसु ? गोयमा ! सव्वे वि ताव तिरिक्खजोणिएसु होज्जा, एवं एत्थ वि अट्ठ भंगा। एवं अनंतरोववन्नगाणं नेरइया (ई)णं जस्स जं अत्थि लेस्सादीयं अणागारोवओगपज्जवसाणं तं सव्वं एयाए भयणाए भाणियव्वं जाव वेमाणियाणं । नवरं अनंतरेसु जे परिहरियव्वा ते जहा बंधिसए तहा इहं वि । एवं नाणावर णिज्जेण वि दंडओ, एवं जाव अंतराइरणं निरवसेसं । एसो वि नवदंडगसंगहिओ उसओ भाणियव्वो ।
एवं एएण कमेणं जहेव वधिसए उद्देसगाणं परिवाडी तहेव इह वि असु भंगे नेयव्वा । नवरं जाणियव्वं ज जस्स अत्थि तं तस्स भाणियव्वं जाव अचरिमुइसो । सब्वे वि एए एक्कारस उद्दे सगा ।
- भग० श २८ । उ २ से ११ । पृ० ६०३-६०४ सलेशी अनंतरोपपन्न नारकी जीवों ने पापकर्म का समर्जन तथा समाचरण आठ विकल्पों में किया था । यावत् सलेशी अनंतरोपपन्न वैमानिक देवों ने पापकर्म का समर्जन तथा समाचरण आठ विकल्पों में किया था। जिसमें जितनी लेश्या होती है उतने ही पद कहने । पापकर्म, ज्ञानावरणीय यावत् अंतराय कर्म के नौ दंडक निरवशेष कहने। इस प्रकार नत्र दंड सहित उद्देशक कहने ।
इस प्रकार क्रम से सलेशी परंपरोपपन्न यावत् सलेशी अचरम जीवों के नव उद्देशक (मोट ११ उद्देशक ) कहने। जिस जीव में जितनी लेश्या हो, उतने पद कहने ।
·७७ सलेशी जीव और कर्म का प्रारंभ व अंत :
जीवाणं भंते! पावं कम्मं किं समायं पटुविसु समायं निट्ठविंसु (१), समायं पट्ट िविसमायं निविसु (२), विसमायं पट्टविसु समायं निट्टविंसु (३), विसमायं पट्टविसु विसमायं निट्टविंसु ( ४ ) ? गोयमा ! अत्थेगइया समायं पट्टविसु समायं निट्टविसु, जाव अत्येगइया विसमायं पट्टर्विसु विसमायं निट्टर्विसु । से केणट्टणं भंते ! एवं वुबइ - अत्थेगइया समायं पट्ठर्विसु समायं निट्ठर्विसु० तं चेव ? गोयमा ! जीवा चव्विा पन्नत्ता, तंजहा - अत्थेगइया समाज्या समोववन्नगा (१), अत्येगइया समाउया विसमोववन्नगा (२), अत्थेगइया विसमाज्या समोववन्नगा (३), अत्थेगया विसमाया विसमोववन्नगा (४) तत्थणं जे ते समाज्या समोववन्नगा ते णं पावं कम्मं समायं पट्टर्विसु समायं निट्टविंसु । तत्थ णं जेयंते समाज्या विसमोववन्नगा ते णं
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