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* ६१७ शुक्ललेशी जीव-दंडक और समपद :
सुक्कलेस्सावि तहेव जेर्सि अत्थि, सव्वं तहेव जहा ओहियाणं गमओ, नवरं पम्हलेस्ससुक्कलेस्साओ पंचेंदियतिरिक्खजोणियमणुस्स वेमाणियाणं चेव न सेसाणं ति ।
लेश्या कोश
-- पण्ण० प १७ । उ १ । सू ११ प० ४३७ जैसा औधिक दंडक के विषय में कहा- वैसा ही शुक्ललेशी दंडक के विषय में समझना परन्तु जिसके शुक्ल लेश्या होती है उसी के कहना ।
सम्मुच्चयगाथा
सहसा भंते! नेरइया सव्वे समाहारगा ? ओहियाणं, सलेस्साणं, सुक्कलेस्सा, एएसि णं तिन्हं एक्को गमो, कण्हलेस्साणं नीललेस्साणं वि एक्को गमो नवरं वेयणाए मायिमिच्छादिट्ठीज्ववन्नगा य, अमायिसम्मदिट्ठीउववन्नगा य भाणियव्वा । मस्सा किरियासु सरागवीयरागपमत्तापमत्ता ण भाणियव्वा । काऊलेसाए वि एसेव गम । नवरं नेरइए जहा ओहिए दंडए तहा भाणियव्वा, तेऊलेस्सा, पम्हलेसा जस्स अथ जहा ओहिओ दंडओ तहा भाणियव्वा । नवरं मणुस्सा सरागा य वीयरागा य न भाणियव्वा ।
गाहा- दुक्खाउए उदिन्ने आहारे कम्मवन्न लेस्सा य । समवेयण - समकिरिया चेव बोधव्वा ॥
समाउए
-भग० श १ | उ २ । प्र ६७ | पृ० ३६३
६२ लेश्या तथा प्रथम- अप्रथम :
सलेस्से णं भंते! ( पढमे - अपढमे ) पुच्छा ? गोयमा ! जहा आहारए, एवं पुहुत्ते वि, कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा एवं चेव, नवरं जस्स जा लेस्सा अस्थि । अलेस्से णं जीवमणुस्ससिद्धे जहा नोसन्नी - नोअसन्नी ।
- भग० श १८ | उ १ । प्र० १० | पृ० ७६२
सलेशी जीव (एकवचन बहुवचन ) प्रथम नहीं, अप्रथम है। इसी तरह कृष्णलेशी यावत् शुक्ललेशी तक जानना । जिस जीव के जितनी लेश्याएँ हो उसी प्रकार कहना । अलेशी जीव ( जीव- मनुष्य-सिद्ध ) प्रथम है, अप्रथम नहीं है ।
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- ६३ सलेशी जीव चरम - अचरम :
सलेस्सो जाव सुक्कलेस्सो जहा आहारओ, नवरं जस्स जा अत्थि [ सव्वत्थ एगत्ते सिय चरिमे, सिय अचरिमे, पुहुत्तेणं चरिमा वि अचरिमा वि] अलेस्सो जहा
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