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लेश्या - कोश जाव - जे भविए जहन्नकाल० x x x ते णं भंते! जीवा एवं सो चेव पढमो गमओ निरवसेसो भाणियव्वो ) उनमें कृष्ण यावत् शुक्ल छ लेश्या होती हैं ।
- भग० श २४ । उ १ । प्र ६१, ६२ | पृ० ८१६
गमक-३ : पर्याप्त संख्यात् वर्ष की आयुवाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि से उत्कृष्टस्थितिवाले रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( सो चेव उक्कोसकालट्ठिए ववन्नो XXX अवसेसो परिमाणादीओ भवाएसपज्जवसाणो सो चेव पढमगमओ णेयव्वो ) उनमें कृष्ण यावत् शुक्ल छ लेश्या होती हैं ।
- भग० श २४ | उ १ । प्र ६३ । पृ० ८१६
भंते !
गमक- ४ : जघन्यस्थितिवाले पर्याप्त संख्यात् वर्ष की आयुवाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनि से रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( जहन्नका लट्ठिईयपज्जत्तसंखेज्जवासाउय सन्निपंचिदियतिरिक्खजोणिए णं जे भविए रणभपुढवि० जाव - उववज्जित्तए x x x ते णं भंते x x x लेस्साओ तिन्नि आदिल्लाओ ) उनमें प्रथम की तीन लेश्या होती हैं ।
- भग० श २४ ।
१ । प्र ६४, ६५ | पृ० ८१६-२० गमक–५ : जघन्यस्थितिवाले पर्याप्त संख्यात् वर्ष की आयुवाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनि से जघन्यस्थितिवाले रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( सो चेव जहन्नका लट्ठिईएस उववन्नो xxx ते णं भंते! एवं सो चेव चत्थो गमओ निरवसेसो भाणियन्त्रो ) उनमें प्रथम की तीन लेश्या होती हैं ।
-भग० श २४ । उ १ । प्र ६६ | पृ० ८२० गमक–६ : जघन्यस्थितिवाले पर्याप्त संख्यात् वर्ष की आयुवाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनि से उत्कृष्ट स्थितिवाले रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( सो चेव उक्कोसकालट्ठिईएस उववन्नो x x x ते णं भंते ! एवं सो चेव चत्थो गमओ निरवसेसो भाणियन्त्रो ) उनमें प्रथम की तीन लेश्या होती हैं।
- भग० श २४ । १ । प्र ६७ । पृ० ८२०
गमक – ७ : उत्कृष्टस्थितिवाले पर्याप्त संख्यात् वर्ष की आयुवाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि से रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( उक्कोसकालट्ठिईयपज्जत्तसंखेज्जवासाउय० जाव - तिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए रयणपभापुढविनेरइएस उववज्जित्तए x x x ते णं भंते ! जीवा० अवसेसो परिमाणादीओ भवाएसपज्जवसाणो एएसिं चेव पढमगमओ णेयव्वो ) उनमें कृष्ण यावत् शुक्ल छ लेश्या होती हैं ।
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- भग० श २४ | उ १ । प्र ६८, ६६ । पृ० ८२०
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