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लेश्या-कोश
६१ स्नातक सलेशी तथा अलेशी दोनो होते हैं जो सलेशी होते हैं उनमें एक परम शुक्ललेश्या होती है।
छ-सामायिक चारित्र वाले संयति में :
सामाइयसंजए णं भंते ! किं सलेस्से होज्जा, अलेस्से होज्जा ? गोयमा ! सलेस्से होज्जा जहा कसायकुसीले ।
-भग० श २५ । उ ७ । प्र ४६ । पृ० ८६० सामायिक चारित्र वाले संयति में छः लेश्या होती है । ज-छेदोपस्थानीय चारित्र वाले संयति में :एवं छेदोवट्ठावणिएवि।
-भग० श २५ । उ ७ । प्र ४६ | पृ० ८६० इसी प्रकार छेदोपस्थानीय चारित्र वाले संयति में छः लेश्या होती है । झ-परिहारविशुद्धिक चारित्र वाले संयति में :परिहारविशुद्धिए जहा पुलाए।
-भग० श २५ । उ ७ । प्र ४६ । पृ०८६० परिहारविशुद्धिक चारित्र वाले संयति में तीन लेश्या होती है। ञ-सूक्ष्म संपराय वाले संयति में :सुहुमसंपराए जहा नियंठे।
-भग० श २५ । उ ७। प्र४६। पृ० ८६० सूक्ष्म संपराय चारित्र वाले संयति में एक शुक्ललेश्या होती है। ट-यथाख्यात चारित्र वाले संयति में :अहक्खाए जहा सिणाए नवरं जइ सलेस्से होज्जा, एगाए सुक्कलेस्साए होज्जा ।
-भग श २५ । उ ७ । प्र ४६ । पृ० ८६० यथाख्यात चारित्र वाले सलेशी तथा अलेशी (स्नातक की तरह ) दोनों होते हैं जो सलेशी होते हैं उनके एक शुक्ललेश्या होती है। '२६-विशिष्ट जीवों में :
१-अश्रुत्वा केवली होनेवाले जीव के अवधि ज्ञान के प्राप्त करने की अवस्था में :
असोच्चाणं भंते xx (विभंगे अन्नाणे सम्मत्तपरिग्गहिए खिप्पामेव ओही परावत्तइ ) से णं भंते! कइसु लेस्सासु होज्जा ? गोयमा ! तिसु विशुद्धलेस्सासु होज्जा, तंजहा, तेउलेस्साए, पम्हलेस्साए, सुकलेस्साए ।
-भग० श६ । उ ३१ । प्र १२ । पृ० ५७६
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