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है यथा-'एवं सक्करप्पभाएऽवि'—विषयांकन '५३'३ । पृ० ६३ । कहीं-कहीं समूचे मूल पाठ को एक वर्गीकृत उपविषय में देकर उस पाठ में निर्दिष्ट अन्य वर्गीकृत उपविषयों में उक्त मूल पाठ को बार-बार उद्धत न करके केवल इंगित कर दिया है, यथा-५८.३१.१ में '५८.३०.१ के पाठ को इंगित किया गया है।
प्रत्येक विषय के संकलित पाठों तथा अनुसंधित पाठों का वर्गीकरण करने के लिए हमने प्रत्येक विषय को १०० वर्गों में विभाजित किया है तथा आवश्यकतानुसार इन सौ वर्गों को दस या दस से कम मूल वर्गों में भी विभाजित करने का हमारा विचार है ।
सामान्यतः सभी विषयों के कोशों में निम्नलिखित वर्ग अवश्य रहेंगे
० शब्द विवेचन ( मूल वर्ग), .०१ शब्द की व्युत्पत्ति-प्राकृत, संस्कृत तथा पाली भाषाओं में, .०२ पर्यायवाची शब्द–विपरीतार्थक शब्द, .०३ शब्द के विभिन्न अर्थ, •०४ सविशेषण-ससमास शब्द, .०५ परिभाषा के उपयोगी पाठ, .०६ प्राचीन आचार्यों द्वारा की गई परिभाषा, '०७ भेद-उपभेद, •०८ शब्द सम्बन्धी साधारण विवेचन, '६ विविध ( मूल वर्ग ), '६६ विषय सम्बन्धी फुटकर पाठ तथा विवेचन । अन्य सब मूल वर्ग या उपवर्ग संकलित पाठों के आधार पर बनाए जायंगे। लेश्या-कोश में हमने निम्नलिखित मूल वर्ग रखे हैं.० शब्द-विवेचन
१ द्रव्यलेश्या ( प्रायोगिक ) '३ द्रव्यलेश्या ( विस्रसा) '४ भावलेश्या '५ लेश्या और जीव '६ सलेशी जीव द विविध
इन ६ मूलवर्गों में से शब्द-विवेचन ८ उपवर्षों में, द्रव्य लेश्या (प्रायोगिक ) १६ उपवर्गों में, द्रव्यलेश्या ( विस्रसा) ५ उपवर्गों में, भावलेश्या ६ उपवर्गों में, लेश्या और
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