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लेश्या-कोश १५.२७ पाठा आदि वनस्पतिकाय में
अह भंते! पाढामियवालुंकिमहुररसारायवल्लिपउमामोंढरिदंतिचंडीणं एएसि णं जे जीवा मूल० एवं एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा आल्यवग्गसरिसा ।
-भग० श० २३ । व ४ । पृ० ८१४ ___ पाठा, मृगवालुंकी, मधुररसा, राजवल्ली, पद्मा, मोढरी, दंती, चण्डी-इनके मूल यावत् बीज में तीन लेश्या तथा छब्बीस विकल्प होते हैं । १५.२८ माषपर्णी आदि वनस्पतिकाय में -
अह भंते ! मासपण्णीमुग्गपण्णीजीवगसरिसवकरेणुयकाओलिखीरकाकोलिभंगिणहिकिमिरासिभद्दमुच्छणंगलइपओयकिंणापउलपाढेहरेणुयालोहीण-एएसि गं ले जीवा मूल० एवं एत्थ वि दस उद्देसगा निरवसेसं आलुयवग्गसरिसा ।।
-भग० श० २३ । व ५ पृ० ८१४ मासपी, मुद्गपणी, जीवक, सरसव, करेणुक, काकोली, क्षीरकाकोली, भंगी, णही, कृमिराशि, भद्रमुस्ता, लांगली, पउय, किण्णा-पउलय, पाढ, हरेणुका, लोही- इनके मूल यावत् बीज में तीन लेश्या तथा छब्बीस विकल्प होते हैं।
__एवं एत्थ पंचसु वि वग्गेसु पन्नासं उद्दसगा भाणियवा सव्वत्थ देवा न उववजंति तिन्नि लेस्साओ। सेवं भंते ! २ त्ति
-भग० श० २३ । पृ० ८१४ उपरोक्त ( १५.२४ से '१५.२८ तक ) साधारण वनस्पतिकाय के जीवों में तीन लेश्या होती है ; क्योंकि इनमें देवता उत्पन्न नहीं होते हैं। १६ द्वीन्द्रय में(क) तेउवाउवेइ दियतेइ दियचउरिदियाणं जहा नेरइयाणं ।
-पण्ण० प १७ । उ २ । प्र १३ । पृ० ४३८ (ख) (बेइ दिया) तिन्निलेस्साओ।
-जीवा० प्रति० १। सू २८। पृ० १११ (ग) तेउवाउबेइदिय तेइ दियचरिंदियाणं वि तोलेस्सा जहा नेरइयाणं ।
-ठाण० स्था ३ । उ १ । सू १८१ । पृ० २०५ (घ) तेउवाउबेइदियतेइ दियचरिंदिया णं तिन्निलेसाओ।
----ठाण० स्था २ । उ १ । सू ५१ । पृ० १८४ द्वीन्द्रिय में तीन लेश्या होती है। १७ त्रीन्द्रिय में
देखो ऊपर द्वीन्द्रिय के पाठ (१६) तीन लेश्या होती है ।
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