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( १३ ) ___ यक्ष अत्यन्त श्रान्त हो गया। वह भगवान के चरणों में गिर पड़ा और बोला"भट्टारक मुझ पापी को आप क्षमा करे। भगवान् अब भी वैसे ही मौन खड़े थे ।
इस प्रकार उस रात के चारों प्रहरों में भगवान को अत्यन्त भयानक कष्टों का सामना करना पड़ा। रात के पिछले प्रहर के अंतिम भाग में भगवान को नींद आ गई। उसमें उन्होंने दस महास्वप्न देखें । स्वप्न देख वे प्रतिबुद्ध हो गए।
प्रातःकाल हुआ । लोग आए । अष्टांग निमित्तज्ञ उत्पन्न तथा देवकुलिक इन्द्रशर्मा भी आये। वहाँ का सारा वातावरण सुगंधमय था । वे मन्दिर में गये। भगवान् को देखा। सब उनके चरणों में गिर पड़े ।
उत्पल आगे बढ़ा और बोला-स्वामिन् ! आपने रातके अन्तिम भाग में दस स्वप्न देखे हैं । उनकी फलश्रुति मैं अपने ज्ञानबल से जानता हूँ। आप स्वयं उसके ज्ञाता है । भगवान ! आपने जो माला देखी थी उस स्वप्न की फलश्रुति में नहीं जान पाया। आप कृपाकर बताएँ ।
भगवान ने कहा----'उत्पल ! जो तुम नहीं जानते, वह मैं जानता हूँ। इस स्वप्न का अर्थ यह है कि मैं दो प्रकार के धर्मों की प्ररूपणा करूँगा-सागार धर्म और अनगार धर्म ।
उत्पल भगवान को वंदन कर चला गया । भगवान ने वहाँ पहला वर्षावास बिताया।
.०१ वर्धमान के साधुओं का विवेचन .०१.१ औधिक श्रमणों का विवेचन
(क) तेणं कालेणं तेणं समपणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे
समणा भगवंतो-अप्पेगइया उग्गपव्वइया भोगपचइया राइण्णणायकोरव्वखत्तियपव्वइया भडा जोहा सेणावईपसत्थारो सेट्ठी इन्भा अण्णे य बहवे एवमाइणो उत्तमजाइकुलरूवविणयविण्णाणवण्णलावण्णविकमपहाणसोभग्गकतिजुत्ता बहुधणधण्णणिवपरियालाफिडियाणरवइगुणाइरेगा इच्छियभोगा सुहसंपललिया किंपागफलोवमं च मुणियविसयसोक्खं जलबुब्बुयसमाणं कुसग्ग-जलबिन्दुचंचलं जीवियं य णाऊण अद्ध वमिणं रयमिव पडग्गलग्गं संविधुणित्ताणं चइत्ता हिरण्णं जाव [ यावच्छब्दोपादानादिदं दृश्यम्-चिच्चा सुवण्णं चिच्या धणं-एवं धण्णं बलं वाहणं
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