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भगवान महावीर के समय में अंग, मगध, त्वस आदि देश राजतन्त्र द्वारा शासित थे । काशी, कौशल, विदेह, आदि देशों में गणतन्त्र की स्थापना हो चुकी थी । उस समय दो प्रसिद्ध गणतन्त्र थे— एक लिच्छवियों का, दूसरा मल्लों का । गणयन्त्र राजतन्त्र का उत्तरचरण और जनतन्त्र की पूर्व पीठिका है । लिच्छवियों ने राज्यशक्ति को संगठित करने के लिए गणतन्त्र की स्थापना की । इसकी स्थापना का मुख्य श्रेय विदेह के अधिपति महाराज चेटक को थी । इसमें नौ लिच्छवि और नौ मल्ल - इन अठारह राज्यों का प्रतिनिधित्व था । इसमें विदेह का राज्य सबसे बड़ा था । उसकी राजधानी थी वैशाली ।
विदेह देश में भगवान पार्श्व का धर्म बहुत प्रभावशाली था । और क्षत्रिय सिद्धार्थ - ये दोनों ही भगवान पार्श्व के अनुयायी थे ।
महाराज चेटक वजी गणतन्त्र के अध्यक्ष थे । उनके पिता का नाम केक और माता का नाम यशोमति था । त्रिशला उनकी बहन थी । महाराजा केक ने अपनी पुत्री त्रिशला का विवाह क्षत्रिय कुंडपुर के स्वामी सिद्धार्थ के साथ किया ।
देवी त्रिशला एक पुत्र को पहले जन्म दे चुकी थी। उसका नाम था- - नन्दीवर्धन 1
ऋषभदत्त ब्राह्मण
महाराज सिद्धार्थ को प्रणाम कर प्रियंवदा दासी ने भगवान् महावीर के जन्म की सूचना दी। उन्होंने प्रियंवदा को अमूल्य उपहार दिए। उसे सदा के लिए दासी कर्म से मुक्त कर दिया ।
शिशु ( भगवान महावीर) का रक्त और मांस गोक्षीर-धारा की भाँति धवल था ।
क्षत्रिय कुंडपुर के 'ज्ञातषण्ड' वन में जनता को देखते-देखते कुमार वर्धमान अब श्रमण वर्धमान हो गए ।
प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने अनेक भवपूर्व मरीचि तापस को लक्ष्य कर कहा"यह अन्तिम तीर्थंकर महावीर होगा ।" श्वेताम्बर मतानुसार महावीर की घटना उनके पच्चीस भवपर्व की है तथा दिगम्बर मतानुसार उनके इकतीस भवपूर्व की है ।
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अस्तु अनंत संसार भ्रमण करते करते मरीचि ने अपने पूर्वभव ग्रामचिंतक ( नयसार भिल्ल - पुरुरवा - भिल्ल ) के भव में अटवी में पथभ्रष्ट साधुओं को सही पथ दिखाने से तथा उन साधुओं की देशना श्रवण करने से मिथ्यात्वादि से निर्गमन होकर, सम्यक्त्व की पहली बार प्राप्ति हुई ।
अपर विदेह क्षेत्र में भगवान् महावीर का जीव - ग्रामचिन्तक सुसाधुओं को अन्नपान देने से तथा अटवी से निकलने का सही पथ दिखाने से सम्यक्त्व को प्राप्त कर उसके प्रभाव से आय क्षय होने पर सौधर्म स्वर्ग में देवरूप में उत्पन्न हुआ। वहाँ एक पल्योयम की आयु थी ।
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१ - त्रिषष्टिश्लाघा पुरुष चरित्र १०/१
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