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कोश ग्रन्थों की उपादेयता के विषय में कोई दो मत नहीं हो सकता। परिश्रम साध्य व समय सापेक्ष इस कार्य को इतने सुचारु रूप से संपादन करने के लिए हम विद्वान पण्डित श्रीचन्द चोरड़िया का आन्तरिक भाव से अभिनन्दन करते हैं। साथ ही जैन दर्शन समिति और उनके कार्यकर्त्ताओं को भी इसके प्रकाशन के लिए धन्यवाद देते हैं।
मुनिश्री जसकरण, सुजान, बोरावड़ ( सुजानगढ़ वाले )
वर्धमान जीवन कोश ( द्वितीय खण्ड) में भगवान अनेक भों की विचित्र एवं महत्वपूर्ण उपलब्धि है । प्रशंसनीय है ।
सुफल
| यह ग्रन्थ इतना सुन्दर एवं सुरम्य बन सका है।
इसके लेखक मोहनलाल जी बांठिया तथा श्रीचन्द जी चोरड़िया के श्रम का ही है शोधकर्त्ताओं के लिए यह ग्रन्थ काफी उपयोगी होगा- ऐसा विश्वास है। रिसर्च करने वालों को भगवान वर्धमान के संबंध में सारी सामग्री इस ग्रन्थ में उपलब्ध हो सकेगी ।
मानकमल लोढा, दीनापुर (नागालैंड )
वर्धमान जीवन कोश (द्वितीय) कड़ी का यह ग्रन्थ अत्यन्त उपयोगी ग्रन्थ मंथन है । लिए सरल और बिल्कुल सही साबित हुआ है है परन्तु ऐसा होते हुए भी अलग-अलग है ।
ता० ६-५-८७
महावीर के जीवन संबंधित यह कार्य अति उत्तम एवं
वर्धमान जीवन कोश, द्वितीय खण्ड पर प्राप्त समीक्षा
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ता• ३-६-८७
मेहनत से तैयार किया गया है। इस समय यह पढ़ने वालों से भी मनन करने वालों के और होता रहेगा । इसमें प्रसंग क्रमशः
साषीश्री यशोधरा,
ता० २६-८-८७
प्रस्तुत समीक्ष्य ग्रन्थ 'वर्धमान जीवन कोश' का द्वितीय खण्ड अपने आपमें अनूठा और अद्वितीय है । महावीर जीवन सम्बन्धी सन्दर्भ ग्रन्थ में सम्पादक द्वय का भागीरथ प्रयत्न और गम्भीर अध्ययन प्रतिबिम्बित हो रहा है। आगमों में यत्र-तत्र बिखरी सामग्री को एकत्र कर इस तरीकेसे सजाया है कि शोध विद्यार्थियोंके लिए बड़ी सुगमता कर दी है। प्रस्तुत ग्रन्थ के संकलन-संपादन में शताधिक ग्रन्थोंका उपयोग संपादककी 'एग्गा चित्तोमविस्तामिति' एकाग्र चित्तता का अवबोधक है ।
आगम-सिन्धुका अवगाहनकर अनमोल मोतियों के प्रस्तुतीकरण का यह प्रयास सचमुच महनीय और प्रशस्य है ।
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