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________________ ( ४२२ ) ने “इन विश्वभूति कुमार की जय हो।" ऐसा कहकर विशाखनन्दी को अनाया। शत्रु की तरह उसे देखते ही विशाखनन्दी क्रोधित हुआ। उस समय तत्काल मुनि विश्वभूति किसी गाय के साथ अकड़ जाने से पृथ्वी पर पड़ गये। यह देखकर, कोठे के फल को उखाड़ने का उनका बल कहाँ गया। ऐसा कहकर विशाखनन्दी हँस पड़ा। यह सुनकर विश्वभूति क्रोध के वशीभूत होकर उस गाय के सींग को पकड़ कर आकाश में घुमाया और बाद में ऐसा निदान किया कि-'इस उग्र तपस्या के प्रभाव से मैं भवान्तर में बड़ा भारी पराक्रम वाला होकर इस विशाखनन्दी के मृत्यु का कारण बनूं । तत्पश्चात कोटि वर्ष का आयुष्य पूर्ण कर पूर्व पाप की आलोचना किये बिना ही मृत्यु प्राप्त कर वह विश्वभूति महाशुक्र देवलोक में उत्कृष्ट आयुष्य वाला देव (सतरह सागरोपम) हुआ। इस भरत क्षेत्र में पोतनपुर नामक नगर में प्रजापति नामक राजा था। उसकी सुभद्रा नामक रानी थी। उसने शयन कक्ष में चार महास्वप्न को देखा फलस्वरूप उसके अचल नामक एक बलभद्र पुत्र हुआ और उसके बाद मृगावती नामक एक पुत्री हुई। एक समय यौवनवती और रूपवती ऐसी वह पुत्री जब पिता को प्रणाम करने के लिए गयी तब राजा ने उसे स्वयं की गोद में बैठाया और उसके साथ विवाह करने का विचार किया। राजा ने गांधर्व विधि से अपनी पुत्री से विवाह किया। मृगावती ने शयनकक्ष में सात महास्वप्न देखे फलस्वरूप उसके एक पुत्र हुआ जिसका नाम त्रिपृष्ठ वासुदेव था। इधर में विशाखनन्दी का जीव अनेक भवों में भ्रमण कर तुंगगिरि में केशरी सिंह हुमा । वह शंखपुर प्रदेश में उपद्रव करने लगा। उस समय अश्वग्रीव नामक प्रतिवासुदेव ने एक निमित्त को पछा कि-हमारी मृत्यु किसके द्वारा होगी। फलस्वरूव निमित्तश ने कहा कि जो तुम्हारे चंडवेग दूत पर घसार करेंगे और तुंगगिरि पर स्थित केशरी सिंह को एक लीला मात्र में मार देंगे-वही आपको मारने वाले होंगे। अश्वयीव और त्रिपृष्ठ वासुदेव का संग्राम बारह वर्ष तक रहा। त्रिपृष्ठ वासुदेव ने चक्र के द्वारा अश्वग्रीव प्रतिवासुदेव को मार गिराया। त्रिपृष्ठ वासुदेव ने स्वयं की भुजा से कोटिशिला उपाड़कर छत्र की तरह लीलामात्र में मस्तक तक ऊँचा किया। अर्द्ध भरत क्षेत्र का राज्य किया। राज्य का भोगकर मरण समय में मृत्यु को प्राप्त होकर सप्तम नरक भूमि गये। अचल बलदेव साधुत्व को प्राप्त कर, काल समय में कालकर सिद्धगति को प्राप्त हुए । नोट-कहा जाता है कि त्रिपृष्ठ वासुदेव के वियोग में अचल बलदेव दीक्षित होकर मृत्यु प्राप्त कर मोक्ष पधारे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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