________________
( ४१३ ) जम्बुस्वामीएप्पांतों द्वारा पाद-विषाद बालू
विषय और कषाय रूपी चोरों के संसर्ग से जीव उन्मार्ग गामी, पापी और दुष्ट बन जाता है। जम्बूस्वामी की यह बात सुनकर उस पराये धन का अपहरण करने वाले चोर ने अपने बुद्धि-विस्तार से इस प्रकार उत्तर दिया- कोई एक पुत्र वधू अपनी सास से क्रुद्ध होकर वन में चली गयी और वहाँ वृक्ष के मूल में आत्मघात की इच्छा करने लगी।
___ इस अवस्था में उसे सुवर्णदारु नामक एक मृदंग बजाने वाले ने देखा। इसकी बात सुनकर उस मुर्ख ने उसके आभूषणों के लोभ से उस घर की कमल लक्ष्मी धवलाक्षी काम-रहित जीवन से विरक्त हुई महिला को मरने का उपाय बतलाने का प्रयत्न किया ।
उसने अपने मृदंग पर पैर रखकर वृक्ष से लटकते हुए पाश को अपने गले में डाला किन्तु इसी बीच वह मृदंग फिसलकर गिर गया और वह दुष्ट दुराशय फाँसी से लटक कर मर गया। उसको मरा देखकर उस पुत्रवधू ने उष्णनिःश्वास छोड़ते हुए घर लौट जाना उचित समझा।
जिस प्रकार वह मृदंग वादक उस वध के धन-कंकन आदि के मोह से मरा वैसे ही व मोक्ष सुख के लोभ से मत मर ।
दृष्टांतों द्वारा पाद-विवाद चालू जम्बूकुमार का उत्तर
भणइ कुमार धुत्तु ललियंगउ । एक्कहिं णयरि अस्थिरह रंगउ । तं जोयंति का वि मणि - मेहल ॥ कय मयणे महएघि विसंतुल । आणिउ धाइइ पच्छिमदारे । देषि रमिउ मुणिउ परिवारें। राएं जाणिउ सो लिहक्काविउ । असुइ - पवण्णि विधरि घल्लाविउ ॥ किमि - खज्जंतु दुक्खु पावेप्पिणु । गउ सो णरयहु पाण मुएप्पिणु ।। जिह सो तिह जणु भोयासत्तउ । मरर बप्प णारि - यणहु रत्तउ ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org