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( 45 ) बौद्ध साहित्य में भी भगवान के बारे में जानकारी मिलती है। यद्यपि उसमें वे आलोच्य के रूप में ही अभिलिखित है पर जैन साहित्य की प्रशस्ति और बौद्ध साहित्य की आलोचना - दोनों के आलोक में भगवान की यथार्थ प्रतिभा उभरती है।
भगवान महावीर के दीक्षित होने के पहले भगवान् पाव की परम्परा चल रही थी। उनके हजारों शिष्य वृहत्तर भारत और मध्य एशियाई प्रदेशों में विहार कर रहे थे। उनके दो शिष्य क्षत्रियकुंड नगर में आए। एक का नाम था संजय और दूसरे का नाम विजय। वे दोनों चारण मुनि थे। उन्हें आकाश में उड़ने की शक्ति प्राप्त थी। उनके मन में किसी तत्व के विषय में संदेह हो रहा था। वे उसके निवारण का प्रयत्न कर रहे थे, पर वह हो नही सका। वे सिद्धार्थ के राज प्रासाद में आये। शिशु वर्द्धमान को देखा। तत्काल उनका संदेह दूर हो गया। उनका मन पुलकित हो उठा। उन्होंने वर्द्धमान को 'सन्मति' के नाम वे सम्बोधित किया।
भगवान जब ५८ वर्ष के थे, उस समय उनके शिष्य गौतम और भगवान पार्श्व के शिष्य केशी में व द हुआ था। उसमें धर्म, वेश भूषा आदि अनेक विषयों पर चर्चा हुई थी। बहुत संभव है कि पिटकों में यही घटना काल भी विस्मृति के साथ उल्लिखित हुई हो।
भगवान ५६ वर्ष के थे उस समय भगवान के शिष्य जमालि ने संघभेद की स्थिति उत्पना की थी।
वाद के विषय में भगवान महावीर ने तीन तत्व प्रतिपादन किए१--तत्त्व जिज्ञासा का हेतु उपस्थित हो, तभी वाद किया जाए। २-वाद-काल में जय-पराजय की स्थिति उत्पन्न न की जाए । ३-प्रतिवादी के मन में चोट पहुँचाने वाले हेतुओं और तों का प्रयोग न
किया जाए।
अस्तित्ववादी की दृष्टि में व्यक्ति-व्यक्ति नहीं होता, वह सत्य होता है, चैतन्य का रश्मिज होता है। उसकी अन्तर्भेदी दृष्टि व्यक्तित्व के पार पहुँचकर अस्तित्व को खोजती है । अस्तित्व में यह प्रश्न नहीं होता कि यह कौन है और किसका अनुयायी है ? यह प्रश्न व्यक्तित्व की सीमा में होता है। अस्तित्व के क्षेत्र में सत्य चलता है और व्यक्तित्व के क्षेत्र में व्यवहार ।
भगवान् बुद्ध ने 'बहुजनहिताय' का उद्घोष किया। भगवान महावीर ने 'सर्वजीवहिताय' की उद्घोषणा की।
भगवान महावीर का जीवनवृत्त दिगम्बर साहित्य में बहुत कम सुरक्षित है। श्वेताम्बर साहित्य में वह अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित है पर पर्याप्त नहीं है ।
भगवती सूत्र में भगवान के जीवन-प्रसंग विपुल मात्रा में उपलब्ध है। 'वासगदसाओ' नायाधम्मकहाओ, सूयगडो आदि सूत्रों में भी भगवान के जीवन और तत्वदर्शन विषयक प्रचुर सामग्री है ।
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