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३. माथुरी-युगप्रधान पावलि१-आचार्य सुधर्मास्वामी
१७-आचार्य धर्म , जंबूस्वामी
भद्रगुप्त ,, प्रभवस्वामी
वज्र , शय्यंभव
रक्षित , यशोभद्र
,, आनन्दिल ,, संभृतिविजय
,, नागहस्ती ,, भद्रबाहु
रेवतिनक्षत्र स्थूलभद्र
,, ब्रह्मदीपक सिंह महागिरि
स्कन्दिलाचार्य सुहस्ती
,, हिमवंत बलिस्सह
नागाजुन स्वाति
गोविन्द ,, श्यामाचार्य
, भूत दिन्न सांडिल्य
,, लोहित्य समुद्र
दृष्यगणि १६ , मंगु
,, देवर्द्धिगणि
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सर्वज्ञ-सर्वदर्शी में हमने सामान्य केवली व तीर्थ कर को ग्रहण किया है । सर्वज्ञ-सर्वदशी वर्धमान तीर्थकर का विषयांक हमने ३५४ किया है। इसका आधार यह है कि संपूर्ण जैन बाङ्मय को १०० विभागों में विभाजित किया गया है। ( देखें-मुल वर्गीकरण सूची पृष्ठ ६-११) इसके अनुसार जीव का विषयांकन ०३ है। जीव को ६० विभागों में विभक्त किया गया है। (देखें-जीव वर्गीकरण सूची पृष्ठ १२ ) इसके अनुसार वर्धमान का विषयांकन हमने ६२२४ किया है। इसका आधार इस प्रकार है।
जैन बाङ्मय के मूलवर्गीकरण में जीव का विषयांकन ०३ है तथा जीवनी ( महापुरुषों की जीवनी ) के उपवर्गीकरण में तीर्थकर वर्धमान का बिषयांकन २४ है अतः जीवनी में विषयांकन ६२२४ किया है ।
वर्धमान संबंधी तुलनात्मक अध्ययन के लिए हमने कई असुविधाओं के कारण अन्य धर्मो के दार्शनिक ग्रन्थों का सम्यक अध्ययन नहीं कर सके, केवल मज्झिम निकाय, बंगुत्तर निकाय, यजुर्वेद आदि का अध्ययन किया। उससे प्राप्त वर्धमान (महावीर) जीवनी संबंधी पाठों को हमने दे दिया है।
सामान्यतः अनुवाद हमने शाब्दिक अर्थरूप ही किया है, लेकिन जहाँ विषय की गंभीरता या जटिलता देखी है वहाँ पर अर्थ को स्पष्ट करने के लिए विवेचनात्मक अर्थ भी किया है । कहीं-कहीं पर भावार्थ भी किया है । विवेचनात्मक अर्थ करने के लिए हमने सभी प्रकारकी टीकाओं तथा अन्य सिद्धांत ग्रंथों का उपयोग किया है। छद्मस्था के कारण यदि
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