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( ३५० ) गोशालक कहता है कि हे आर्द्र कुमार! जैसे कोई वैश्य कपूर, अगर कस्तुरी तथा अम्वर आदि बेचने योग्य वस्तुओं को लेकर लाभ के लिए दूसरे देश में आता है और वहाँ अपने लाभ के लिए महाजनों का संग करता है । इसी तरह तुम्हारे ज्ञातपुत्र महावीर स्वामी का भी व्यवहार है। वे अपने स्वार्थ साधन के लिए भी जन-समूह में आकर धर्मोंपदेश आदि करते है-यह मेरा निश्चय है अतः तुम मेरी बात सत्य जानो।
आद्रकुमार का उत्तर
णवं ण कुजा विहुणे पुराणं, चिच्चाऽमई ताइ य साह एवं एतावता बंभवति त्ति वुत्ते, तस्सोदयट्ठी समणे तिमि ॥ समारभंते पणिया भूयगाम, परिग्गहं चेष ममायमाणा। ते णाइसंजोगमविप्पहाय, आयस्स हे पगरेति संग॥ वित्तेसिणो मेहुणसंपगाढा, ते भोयणट्ठा पणिया वयंति। वयं तु कामेहि अज्झोपवण्णा, अणारिया पेमरसेसु गिद्धा ॥ आरंभगं चेव परिग्गहं च, अवि उस्सिया णिस्सिय आयदंडा। तेसिं च उदए जंवयासी, चउरतणंताय दुहाय जेह ॥
गंति णच्वंति तओदएसे, पयंति ते दो घि गुणोदयम्मि से उदए साइमणं तपत्ते, तमुदयं साहयह ताइ णाई । अहिंसयं सव्वपयाणुकंपी, धम्मे ठियं कम्मषिवेगहे तमायदंडेहिं समायरता, अघोहिए ते पडिरूपमेयं ॥
-स्य श्रु० २ । अ६ । गा २० से २५ । पृ. ४६५-६४
भगवान महावीर स्वामी नवीन कर्म नहीं करते है किन्तु वे पुराने कर्मों का क्षपण करते है। क्योंकि वे स्वयं यह कहते हैं कि प्राणी कुमति को छोड़ कर ही मोक्ष को प्राप्त करता है । इस प्रकार मोक्ष का व्रत कहा गया है । उसी मोक्ष की इच्छा के उदय की इच्छा वाले भगवान है।
बनियें तो प्राणियों का प्रारम्भ करते है। तथा वे परिग्रह पर भी ममता रखते है एवं वे शाति के संबंध को न छोड़कर लाम के निमित्त दूसरों से संग करते है।
बनिये धन के अन्वेषी और मैथून में अत्यक्त आसक्त रहने वाले होते है। वे भोजन की प्राप्ति के लिए इधर-उधर जाते रहते है। अतः हम लोग तो बनियों को काम में आसक्त प्रेमरस में फंसे हुए और अनार्य कहते है। परन्तु भगवान महावीर प्रभु ऐसे नहीं है इसलिये बनियों के साथ उनकी तुल्यता बताना मिथ्या है ।
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