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________________ ( ३२६ ) वर्ष भर में एक-एक प्राणी को मारने वाले पुरुष भी दोष रहित नहीं है। क्योंकि शेष जीवों के घात में प्रवृत्ति न करने वाले गृहस्थ भी दोष-वर्जित क्यों न माने जायेंगे । जो पुरुष श्रमणों के व्रतों में स्थित होकर वर्ष भर में भी एक-एक प्राणी को मारता है वह अनार्य्यं कहा गया है -- केवल ज्ञान की प्रप्ति नहीं होती है। तत्त्वदर्शी भगवान की आज्ञा से इस शांतिमय धर्म को अंगीकार करके और इस धर्म में अच्छी तरह स्थित होकर तीनों करणों से मिथ्यात्व की निन्दा करता हुआ पुरुष अपनी तथा दूसरे की रक्षा करता है । महादुस्तर समुद्र की तरह संसार को पार करने के लिए विवेकी पुरुषों को सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र रूप धर्म का वर्णन और ग्रहण करना चाहिए । ५. गोशालक का प्रवाद तथा आर्द्र कुमार का उत्तर (क) गोशालक का प्रवाद समणे पुराली । पुराकंड अह ! इमं सुणेह, एगं तचारी से भिक्खयो उवणेत्ता अणेगे, आइक्यतिन्हं पुढोषित्थरेणं ॥ साssजीविया पट्ठवियाऽथिरेणं, सभागओ गणओ भिक्खुमज्झे । आइक्खमाणो बहुजण्णमत्थं, ण संधयाई अवरेण पुरुष ॥ एतमेव अदुवा चि इहिं, दोऽवण्णमण्णं ण समेंति जम्हा ॥ - सूय० भु २ अ ६ । गा १, २, ३ पुष । पृ० ४६१ महावीर स्वामी पहले अकेले विचरने वाले श्रमण थे परन्तु अब वे अनेक भिक्षुओं को अपने साथ रखकर अलग-अलग विस्तार के साथ धर्म का उपदेश करते है । उस अस्थिर चित्त वाले महावीर ने यह आजीविका खड़ी की है। वे जो सभा में जाकर अनेक भिक्षुओं के मध्य में बहुत लोगों के हित के लिए धर्म का उपदेश करते है । यह इनका इस समय का व्यवहार इनके पहले व्यवहार से बिल्कुल नहीं मिलता है । इस प्रकार या तो महावीर का पहला व्यवहार एकांतवास ही अच्छा हो सकता है अथवा इस समय का अनेक लोगों के साथ रहना ही अच्छा हो सकता है ? परन्तु दोनों अच्छे नहीं हो सकते हैं क्योंकि दोनों का परस्पर विरोध है, मेल नहीं है । Q आद्र कुमार का उत्तर 'पुव्विं च इण्ि व अणागयं व, एकन्तमेव पडिसंधयाइ ॥ समेश्च लोग तसथावराणं, खेमंकरे समणे माहणे वा ॥ आक्खमाणो fu सहस्समझे, एगंतयं सारयई तहवचे ॥ धम्मं कहतस्स उ णत्थि दोसो, खंतस्स दंतस्स जिई दियल्ल || Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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