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________________ ( ३०६ ) घरा को अनुप्रदक्षिणा करता हुआ वह उसमें पूर्व द्वार में बैठा । और वहाँ गोठ-वेल सोपान द्वारा उसमें उतरा। वहाँ उसने जलक्रीड़ा और जल निमज्जन सम्यग् प्रकार किया । तत्पश्चात् वह अच्छा और परम शूचिभूत होकर धरा में से बाहर आया । और जहाँ अभिषेक सभा थी— वहाँ आया । अभिषेक सभा को प्रदक्षिणा करता हुआ वह पूर्व द्वार में उसमें बैठा। ओर वहीँ गोठवेला मुख्य सिंहासन पर चढ़कर बैठा । बाद में उसकी सामानिक सभा के देवसभ्य उसके कर्मकर रूप आभियोगिक देवों को बुलाया और हुक्म दिया कि हे देवानुप्रियो ! अपना स्वामी यह सूर्याभदेव के महाविपुल इन्द्राभिषेक की तैयारी करो । तप णं ते अभिओगिआ देवा सामाणियपरिसोबवम्नेहिं देवेहि एवं वुत्ता समाणा हट्टं जाव-हियया [पृ० ४७ पं०३ ] करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं देवो ! तह' त्ति आणाए विणणं वयणं पडिसुणंति पडिणित्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अबकमंति, उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं भवक्कमित्ता वेडव्वियसमुग्धापणं समोहणंति, समोहणित्ता संखेजाई जोयणाई जाव दोच्चं पि वेडव्वियसमुग्धापणं समोहणित्ता [कण्डिका १९ ] अट्ठलहस्सं सोवन्नियाणं कलसाणं अट्ठसहस्सं रूप्पमयाणं कलसाणं अट्ठसहस्सं मणिमयाणं कलसाणं अट्ठसहस्सं सुवण्णरुपमयाणं कलसाणं अट्ठ सहसं सुवन्नमणिमयाणं कलसाणं अट्ठसहस्सं रुष्पमणिमयाणं कलसाणं अट्ठसहस्सं सुवण्णरुप्पमणिमयाणं कललाणं अट्ठलहस्सं भोमिजाणं कलसाणं एवं भिंगाराणं आयंसाण थालाणं पाईणं सुपतिट्ठाणं वायकरगाणं रयणकरंडगाणं पुप्फसंगेरीणं जाव लोमहत्थचंगेरीणं पुप्फपडलगाणं जाव लोमहत्थपडलगाणं लीहासणाणं छत्ताणं चामराणं तेल्लसमुग्गाणं जाव अंजणसमुग्गाणं प्रयाणं अट्ठसहरूसं धूवकडुच्छ्रयाणं विव्वंति, विउष्वित्ता ते साभाविए य वेडव्विए य कलसे य जाव कडुच्छुए य गिण्हंति गिव्हित्ता सूरियाभाओ विमाणाओ पडिनिक्खमंति पडिनिक्खमित्ता ताए उक्किट्ठाए चवलाए जाव [पृ० ५८ पं १] तिरियमसंखेजाणं जाव [पृ० ५८ पं० १] वीतिवयमाणे बीतिवयमाणे जेणेव खीरोदयसमुद्दे तेणेव उबागच्छंति, उवागच्छित्ता खीरोयगं गिण्हंति जाई तत्थुप्पलाई ताई गेण्हंति जाव [पृ० २१ पं० १०] सयसहस्सपत्ताई गिण्हंति गिण्हत्ता जेणेव पुक्खरोदर समुद्दे तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता पुक्खरोदयं गेण्हंति गिव्हिन्ता जाई तत्थुपलाई लयसहस्सपत्ताई ताई जाव गिण्हति गिरिहन्ता जेणेव भरहेरवया वासाइ जेणेव मागहवरदामपभासाइ तित्थाइ तेणेच उवागच्छंति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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