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अबद्धिक मतवादी मानते हैं कि कर्म आत्मा का स्पर्श करते हैं, उसके साथ एकीभूत नहीं होते ।
सात निन्हिवों में जमाली, रोहगुप्त और गोष्ठामा हिल- ये तीन अंत तक अलग रहे, भगवान् के शासन में पुनः सम्मिलित नहीं हुए, शेष चार पुनः शासन ( विषयगुप्त, आचार्य आषाढ़, अश्वमित्र, गंग ) में आ गये ।
२
३
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संख्या प्रवर्तक आचार्य नगरी
१
जमाली
श्रावस्ती
तिष्यगुप्त
आचार्य आषाढ़ श्वेताम्बिका अव्यक्तवाद
अश्वमित्र मिथला
गंग
समुच्छेदवाद द्विक्रिय त्रैराशिक
अबद्धिक
५.
६
७
२
( २८१
गोष्ठा माहिल दशपुर
ऋषभपुर
उल्लुकातीर नगर गुप्त (षडुलुक) अंतरंजिका
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चार्ट सात निह्नवोंका
प्रवर्तितमत
बहुरतवाद
३६
भगवान महावीर और निह्नववाद
(क) (प्रवचननिह्नव )
समणस्स णं भगवओ महावीरस्स तित्यंसि सत्त पवयणणिण्हगा पण्णत्ता, तंजहा, बहुरता, जीवपएसिया, अवत्तिया, सामुच्छेइया, दोकिरिया, तेरासिया, अबद्धिया ।
१ - बहुरत
२ - जीवप्रादेशिक
समय
भगवान महावीर के कैवल्य प्राप्ति के १४ वर्ष बाद
जीव प्रादेशिक वाद भगवान् महावीर केवल्य प्राप्ति १६ वर्ष बाद निर्वाण के २१४ वर्ष बाद निर्वाण के २२० वर्ष बाद
निर्वाण के २२८ वर्ष बाद
निर्वाण के ५४४ वर्ष बाद
निर्वाण के ५८४ वर्ष बाद
एएसि णं सत्तण्हं पवयणणिण्हगाणं सत्त धम्मायरिया हुत्था, तंजहा जमाली, तीसगुत्ते, आसाढ़े, आसमित्ते, गंगे, छलुए, गोट्ठामा हिल्ले ।
तंजा
एतेसि णं सत्तण्हं पवयणणिण्हगाणं सत्तउप्पत्तिणगरा हुत्था, - संगद्दणी गाहा
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सावत्थी उसभपुरं, सेयवियामिहिलउल्लगातीरं । पुरिमंतरंजि हिगउपपत्तिणगराइ ॥
दसपुरं,
श्रमण भगवान् महावीर के तीर्थ में प्रवचन- निह्नव सात हुए हैं
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ठाण० स्था ७ / सू १४० से ४२
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