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________________ ( २६४ ) करता हुआ देखता है कि यह स्त्री अकेली ही अपने घर का ऐश्वर्य लूट रही है, इसकी कोई सपत्नी ( सौकन ) नहीं है। इसके दास और दासियाँ हमेशा इसकी प्रार्थना करते हैं कि आपके मुख को कौन सा पदार्थ रुचिकर है । उसको देखकर निग्रन्थ निदान कर्म करता है। निदान का फलधर्म सुनने की अयोग्यता और उसके फल का विवेचन तस्सणं तहाप्पगारस्ल पुरिसजातस्स तहारूवे समणेवा माहणेवा जाव पडिसुणिज्जा ? हंता ! पडिसुणिज्जा १ से णं सद्दहेज्जा पत्तिएजा रोएज्जा णो तिण? सम? । अभविएणं से णं तस्स सद्दहणत्ताए। से य भवति महिच्छे जाव दाहिणगामी जेरइए आगमेस्साणं दुल्लभबोहिए यावि भवति। एवं खलु समणाउसो तस्स णिदाणस्स इमेतारूवे पावए फलविवागे जं णो संचाएति केवलि-पण्णत्तं धम्म सद्दहित्तए वा पत्तियतएषा रोइतए था। -दसामु० द १० यदि इस प्रकार के पुरुष को कोई तथारूप श्रमण या माहण धर्मकथा सुनाये तो वह सुन लेगा-किन्तु यह संभव नहीं है कि वह उसमें श्रद्धा, विश्वास और रूचि करे, क्योंकि निदान कर्म के प्रभाव से वह श्रद्धा करने के अयोग्य हो जाता है । वह तो बड़ी-बड़ी इच्छाओं वाला हो जाता है और परिणाम में दक्षिणगामी नारकी तथा जन्मान्तर में दुर्लभ बोधि होता है। हे आयुष्मन् ! श्रमण ! उस निदान कर्म का इस प्रकार पापरूप फलविपाक होता है कि जिससे वह केवली भगवान के कहे हुए धर्म में श्रद्धा विश्वास और रुचि की शक्ति भी नहीं रखता। छट्ठा निदान कर्म____ एवं खलु समणाउसो मए धम्मे पण्णत्ते तं चेव। से य परक्कमेज्जा, परक्कममाणे माणुस्सएसु कामभोगेसु निव्वेदं गच्छेज्जा, माणुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा अणितिया। तहेय जाव संतिउड्ढं देवा देवलोगंसि ते णं तत्थ णो अण्णेसि देवाणं अण्णंदेवि अभिजुंजिय परियारेति । अप्पणो चेव अप्पाणं विउवित्ता परियारेति। अप्पणिज्जियावि देवीए अभिजुंजिय परियारेति । जइ इमस्स तव-नियम-तं चेव सव्वं जाव सेणं सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा-णोतिण? समहे । -दसासु. द १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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