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________________ ( २४८ ) श्रमण अरिहंत भगवंत यावत् सिद्धिगति को प्राप्त हुए को मेरा नमस्कार हो । भगवान् महावीर यावत् सिद्धिगति को प्राप्त करने की अभिलाषा वालों को मेरा नमस्कार हो। मैं यहाँ पर हूँ वहाँ स्थित भगवान् को वंदन करती हूँ। वहाँ स्थित भ्रमण भगवान् महावीर यहाँ स्थित मुझे देखे । इस प्रकार वंदन - नमस्कार किया । वंदन, नमस्कार कर स्वयं के श्रेष्ठ सिंहासन पर पूर्वाभिमुख कर बैठी । उसके बाद वह काली देवी को इस प्रकार का अध्यवसाय यावत् उत्पन्न हुआ किमुझे श्रमण भगवान् महावीर को वंदना यावत् सेवा करनी श्रेयकारक है । ऐसा विचार किया | विचार कर आभियोगिक देवों को बुलाया । बुलाकर इस प्रकार कहा इस प्रकार निश्चय है देवानुप्रिय ! श्रमण भगवान् महावीर ( जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र में राजगृह नगर के गुणशील चैल में ठहरे हुए हैं आदि) । जैसे सूर्याभदेव ( स्वयं के आभियोगिक देवों को बुलाकर आज्ञा दी थी ) वैसे ही आज्ञा दी कि 'यावत् दिव्य ( मनोहर ) और श्रेष्ठ देवों के गमन करने योग्य यान- विमान बनाओं । बनाकर यावत् हमारी आज्ञा वापस दो । यह सुनकर वे आभियोगिक देव भी उसी प्रकार कर यावत् उसे आज्ञा वापस सौंपी। विशेष इतना है कि - हजार योजन के विस्तार वाला यान ( विमान ) बनाया । शेष ( बाकी का सर्व ) उसी प्रकार जानना चाहिए । उसी प्रकार ( सूर्याभदेव की तरह भगवान् के पास आयी ) स्वयं के नाम- गोत्र कहे । कहकर उसी प्रकार ( सूर्याभ की तरह एक सौ आठ कुमार और कुमारिका हस्त से निकाल कर ) नाटक की विधि बतायी । बताकर यावत् काली देवी वापस गयी । हे भगवान् ! ऐसा संवोधन कर स्वामी को वंदन किया, नमस्कार किया । भगवान् गौतम स्वामी श्रमण भगवान् महावीर वंदन - नमस्कार कर इस प्रकार कहा -- हे भगवन् ! काली देवी की वह दिव्य ( मनोहर ) देवऋद्धि कहाँ गयी । उसके प्रत्युत्तर में भगवान् महावीर स्वामी कूटाकार शाला के दृष्टांत से उत्तर दिया । • १७ राजी देवी तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए । सामी समोसढे । परिसा निग्गया जाव पज्जुवासइ ॥४७॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं राई देवी चमरवंखाए रायहाणीए एवं जहा काली तहेव आगया, नट्टविहि उवदंसित्ता पडिगया || ४८ ॥ - नाया० श्रु० २ /व १ / अ २ उस काल उस समय में राजगृह नाम का नगर था । नाम का चैत्य था । Jain Education International For Private & Personal Use Only उस नगर के बाहर गुणशील www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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