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( २२१ ) (ख) तत्थ दुवे जक्खा पुग्नभहमाणिभद्दा रत्ति पज्जुवासंति, चत्तारि मासे रत्ति पूर्व करेंति।
-आव निगा ५२१/टीका भगवान के बारहवें चतुर्मास में पूर्णभद्र और माणिभद्र नामक दो महर्दिक यक्ष हर रोज रात्रि में आकर भगवान की पूजा करते थे। .५ वैशाली में शक्रेन्द्र का आवागमन-छ? चातुर्मास के पूर्व(क) स्वामी जगाम वैशाल्यां शालां कारसंश्रिताम् ।
अनुशाय जनांस्तत्स्थां स्तस्थौ च प्रतिमाधरः ॥६०५॥
क्व स्वामीति तदा ज्ञातुं प्रायुंक्त मघवाऽवधि । जिघांसं तं च कर्मारमपरयश्चाजगाम च॥६०९॥ तस्यैव तं घनं मूनि स्वशत्याऽपातयद्धरिः। कथंचिद्रोगमुक्तोऽपि जगामस यमालयम् ॥६१०॥ प्रणम्य स्वामिनं शक्रः कल्पं सोधर्मभम्यगात् ।
-त्रिशलाका• पर्व १०/सर्ग३ भगवं वेसालीए कम्मार घणेण देविंदो ॥४८५॥
-आव० निगा ४८५ मलयटीका--भगवांश्च वैशाल्यां गतः, तत्र कम्म करो भगवन्तं घनेनाहन्तुं प्रवृत्त
अत्रान्तरे देवेन्द्र आगतः, तेन स मारितः॥ जब भगवान विश ला नगरी पधारे थे उस समय इन्द्र--(प्रथम स्वर्ग का इन्द्र) का आगमन हुआ था। इन्द्र ने धण-प्रहार से लुहार को मारा था-क्योंकि कुम्हार घण से भगवान को मारना चाहता था । (ख) भिग्राम में शकेन्द्र का__ जंभियगामे नाणस्स उप्पया वागरेइ देविदो।
आ० निगा ५३३/पूर्वार्ध चतुर्मास्यत्यये स्वामी जम्भकग्राममाययौ। तत्र नाट्यविधि शक्रो दर्शयित्वाऽब्रवीदिति ॥६१४॥ जगद्गुरो! कतिपयैरद्य प्रभृति चासरैः। उत्पत्स्यतेऽत्रभषतः केवलज्ञानमुज्ज्वलम् ॥६१५॥ इत्युवित्वा सुनासीरो धीरं नत्वा ययौ दिवम् ।
-त्रिशलाका पर्व १०/सर्ग ४
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