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( २१६ ) ईशानो वागुरं चोचे कि प्रत्यक्षं जिनेश्वरम् । अतिक्रम्याग्रतो यासितबिम्बार्चन हेतवे ? ॥३३॥
–त्रिशलाका० पर्व १०/सर्ग ४ जब भगवान महावीर पुरिमताल नगर के शकटमुख नामक उद्यान में प्रतिमा में स्थित थे। उस समय ईशानेंद्र भगवान को वंदन करने के लिए आया था । .३ सानतकुमारेन्द्र तथा माहेन्द्र काग्यारवें चतुर्मास के बाद की घटना (क) मलर टीका--ततो सामी कोसंबीतो निग्गंतूण सुमंगलं नाम गामं गतो, तत्थ सणंकुमारो एइवंदति पियंच पुच्छइ, तत्थ पढम सिंदीकंदगनिवारणत्थमागतो संपयं पुणपियपुच्छतोत्ति। ततो सामी सुच्छेत्तं गतो, तत्थ माहिंदो पियपुच्छतो एइ, ततो सामी पालगं नाम गामं गतो, तत्थ वाइलो नाम वाणिओ जत्ताए पधाधितो सामि पेच्छइ, ततोसो अमंगलं तिकाऊण असि गहाय पधावितो पयस्सा फलउत्ति, तत्थ सहत्थेण सिद्धत्थेण सीसं छिन्नं । अमुमेवार्थमाह
तत्तो अ सुमंगल सणंकुमार सुच्छित्त एइमाहिंदो। घालुम वाइल वणिए अमंगलं अप्पणो असिणा।
__ आव• निगा ५२१ टीका-ततो भगवान् सुमंगलं नाम ग्रामंगतः, तत्र सनत्कुमारो देवेन्द्रः प्रियपृच्छक आगतः ततः सुक्षेत्रायां भगवान् जगाम, तत्र माहेन्द्रः प्रियपृच्छक आगमत्, तदनन्तरं पालकं नाम ग्रामं स्वामी गतः' तत्र वाइलो नाम वणिक् देशान्तर गच्छन् अमङ्गलमिति कृत्वा भगवत उपरिखंगमुद्गीर्य प्रधावितः तत आत्मना स्वहस्तेन असिना विनाशितः । (ख) नाथोऽपि विहरन् प्राप ग्रामं नाम्ना सुमंगलम् ।
तस्मिन् सनत्कुमारेन्द्रणाऽभ्युपेत्याऽभ्यवन्धत ॥६०१॥ ततो जगाम भगवान् सुक्षेत्रे सन्निवेशने। तस्मिन्माहेन्द्रकल्पेन्द्रणैत्य भक्तयाऽनमस्यत ॥६०२॥
–त्रिशलाका पर्व १०/सर्ग ४ जब कौशाम्बी नगरी से निकलकर भावान सुमंगल ग्राम पधारे तब सानतकुमारेन्द्र भगवान के पास आया वंदन किया सुखसाता पृच्छा की।
सुमंगल ग्राम से विहारकर भगवान् सुक्षेत्र पधारे। वहाँ माहेन्द्र ने प्रिय-पृच्छा की।
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