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( २१६ ) तब फिर वे बहुत से देवकुमार, देवकुमारिका ने चार प्रकार के बाजे बजाये । यथा
१-माहलादि कूट कर बजे । २-वीणादि धमकर बजे ।
४-कंसलादि परस्पर आस्फ लकर बजे ।
और ४-शंखादि फूकने से बजे । तब फिर वे बहुत देवकुमार, देवकुमारिका चार प्रकार के गीत गाये। यथा
१-प्रारम्भ में शीघ्र, फिर मन्द । २-प्रारम्भ में मन्द, फिर शीघ्र ३-आदि-अन्त मन्द और
४-आदि-अन्त शीघ्र-ये चारों रोचित रूप गीत गाये । तत्पश्चात बहुत कुमार-कुमारिकाओं ने चार प्रकार का नाटक बताया। यथा१-अंचित, २-रिंभति, ३-आरभंड, और ४-मसोलका ।
तत्पश्चात् वे बहुत से देवकुमार, देवकुमारिकाओं ने चार प्रकार का अभिनय-नई संस्कृतादि भाषा बोलकर बताये । यथा
१-दृष्टांतिका, २-प्रत्यानर्तिका
३-सामंतोपनीवातिका । और Y-लोक मध्य दशानका । तब फिर देवकुमार-देवकुमारिका गौतमादि श्रमण निम्रन्थों को दिव्यदेव सम्बन्धी ऋद्धियुक्त, दिव्या ति क्रांतियुक्त दिव्य देव के भावयुक्त उक्त बत्तीस प्रकार का नाटक बताया।
बताकर श्रमण भगवान महावीर को तीन बार उठ-बैठकर हाथ जोड़कर प्रदक्षिणा की फिर कर वंदन नमस्कार किया ।
वन्दन नमस्कार करके जहाँ सुर्याभदेव था-वहाँ आये। आकर सुर्याभदेव को दोनों हाथ जोड़कर दसों नख एकचित्त कर शिरमावर्त्त फिराकर मस्तक पर अंजली स्थापन कर जय हो विजय हो-इस प्रकार बंधाकर वह प्रथम दी हुई उनकी आज्ञा उनको वापस की ।
तत्पश्चात् वह सुर्याभदेव वह दिव्य देव, ऋद्धि-देव की युतिकांति देव के भाव जो प्रसारित किये थे। एक के अनेक रूप बनाये थे उसका प्रतिसंहार किया। क्षत्रमात्र में आप स्वयं एक रूप बन गया।
___ तब वह सुर्याभदेव श्रमण भगवान महावीर को तीन बार हाथ जोड़कर प्रदक्षिणा फिराकर वंदन नमस्कार किया ।
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