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उस श्रेणिक राजा के धारिणी नाम की देवी थी ।
उस काल उस समय में श्रमण भगवान् महावीर पूर्वानुपूर्व - ग्रामानुग्राम से विहार करते हुए राजगृह नगर के गुणशिलक चैत्य में पधारे । पधार कर यथा प्रतिरूप अभिग्रह को धारण कर संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित कर रहने लगे ।
तत्पश्चात् भ्रमण भगवान् महावीर राजगृह नगर के गुणशिलक चैत्य से निकल कर बाहर जनपद विहार करने लगे ।
. १६ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिद्दे नयरे होत्था / चण्णओ / गुणसिलए इप / वण्णओ / जाव परिसा पडिगया ।
- भग० श१८ / ०३ / प्र५६ / पृ० ७६१
उस काल उस समय में राजगृह नाम का नगर था । गुणशील नामक उद्यान था । भगवान् महावीर का पदार्पण हुआ - यावत् परिषद् वंदन कर चली गई ।
इस अवसर पर माकंदी अनगार ने भगवान ने प्रश्नोत्तर किये थे ।
.१७ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था । x x x गुणसिलए वेइए । रायगिहे नगरे सेणिए राया होत्था । x x x । तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थयरे जाव गामाणुगामं दूइजमाणे जाव अप्पा भावेमाणे विहरइ । तरणं रायगिहे नयरे सिंघाडग-तिय-खडकचश्वर एवं जाव परिसा निग्गया जाव पज्जुवासइ ।
- दसासु० द १० / १,४ उस काल उस समय राजगृह नाम का नगर था । शैल्य चैत्य था | श्रेणिक राजा था - उस काल उस समय आदिकर तीर्थंकर भगवान् महावीर ग्रामानुग्राम विहार करते हुए अपनी आत्मा को भावित करते हुए पधारे । परिषद् का आगमन हुआ यावत् पर्युपासना करने लगी ।
• १८ राजगिहे जाव एवं वयासी x x x तपणं समणे भगवं महावीरे बहिया जाव विहरइ ।
- भग० का १८ / ०८ / सू० १ राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने भगवान् महावीर से प्रश्नोत्तर किये । तत्पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर बाहर के जनपद में विचरने लगे ।
-१९ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव पुढविसिलापट्टओ, तस्स गुणसिलस्स उज्जाणस्ल अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति, तए समणे भगवं महाबीरे जाव समोसढे जाव परिसा पडिगया ।
- भग० श, उ८ / उ८ / ०२
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