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( १८६ ) आदिकर ( धर्मतीर्थ की आदि करने वाले ) यावद सर्वज्ञ सवदशी श्रमण भगवान् महावीर स्वामी-माह्मणकुंडग्राम नगर के बाहर, बहुशाल नामक उद्यान में यथायोग्य अवग्रह ग्रहण करके विचरते है।
(ख) तेणं कालेणं तेणं समएणं माहणकंडग्गामे णयरे होत्था। वण्णओ। बहुसालए बेहए। वण्णओ xxx । तेणं कालेणं तेणं समपणं सामी समोसढे। परिसा पज्जुवासइ।
-भग० शह/७३३/सू १३७, १३८/पृ०४३२ उस काल उस समय में 'ब्राह्मण-कुंडग्राम' नाम का नगर था। बहुशालक नाम का चैत्य ( उद्यान) था। उस ब्राह्मणकंडग्राम में 'ऋषभदत्त' नाम का ब्राह्मण रहता था। उस काल उस समय में भ्रमण भगवान महावीर स्वामी वहाँ पधारे। जनता पर्यपासना करने लगी।
(ख) अथ भव्यानुग्रहाय प्रामाकरपुरादिषु।
विहरन् ब्राह्मणकुंडग्रामेऽगात् परमेश्वरः ।।१।। बहुशालाधोद्याने पुरात्तस्माद्वहिः स्थिते । चक्रुः समवसरणं त्रिवप्रं त्रिदशोत्तमाः ॥२॥ न्यषदप्रामुखमात्र पूर्वसिंहासने प्रभुः। गौतमाद्या यथास्थानं सुराद्याश्चाद्यावतस्थिरे ।।३।। श्रुत्वा सर्वज्ञामायातं पौरा भूयांस आययुः। देवानंदार्षभदत्तावेयतुस्तौ च दंपती ॥४॥
- त्रिशलाका० पर्व १०/सर्ग ८ ग्राम आकर नगर आदि में विहार करते हुए श्री वीर भगवान् ब्राह्मणकंडग्राम पधारे। उसके बाहर बहुशाल नामक उद्यान में देवों ने तीन गढवाले समवसरण की रचना की। यहाँ भगवान विराजे । भगवान् महावीर के बिहार स्थल
(ग) तेणं कालेणं, तेणं समएणं माहणकुंडग्गामे णयरे होत्था। बण्णओ। घासालए चेदए ।x x x | तेणं कालेणं, तेणं समएणं सामी समोसढे। परिसा जाप पज्जुवासा।
- भग• श ६/७३३ - उस काल उस समय में ब्राह्मण-कुण्डग्राम नाम का नगर था। बहुशालक नामक चैत्य मा । उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी बहाँ पधारे। जनता याषव पर्यपासना करने लगी।
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