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१ - प्रभावती - बीतभय नगर के स्वामी 'उदायन' के साथ |
२ - पद्मावती - चंपापुरपति दधिवाहन के साथ ३ - मृगावती - कौशाम्बीपति शतानीक के साथ ४ - ज्येष्ठा – कुंडनपुर पति नंदीवर्धन के साथ
५- शिवा - उज्जयिनी पति चंडप्रद्योत के साथ
६ - सुज्येष्ठा - साध्वी बनी
७ - चेतना - 'राजगृहीपति' श्रेणिक' के साथ - आवश्यक कथा ।
आवश्यक कथा
सत्यकी - बैशाली गणतन्त्र के अधिपति महाराज चेटक की पुत्री का नाम
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ज्येष्ठा था । वह प्रव्रजित हुई और अपने उपाश्रय में कायोत्सर्ग करने लगी ।
वहाँ एक पेढाल परिव्राजक रहता था । उसे अनेक विद्याएँ सिद्ध थीं । वह अपनी विद्या को देने के लिए योग्य व्यक्ति की खोज कर रहा था । उसने सोचा- यदि किसी ब्रह्मचारिणी स्त्री से पुत्र उत्पन्न हो तो ये विद्याएँ बहुत कार्यकर हो सकती है। एक बार उसने साध्वी को कायोत्सर्ग में स्थित देखा । उसने मंत्र विद्या से धूमिका का व्यामोह ( वातावरण को धूमिल बना कर ) से साध्वी में वीर्य का निवेश किया । गर्भ रहा । एक पुत्र उत्पन्न हुआ । उसका नाम सत्यकी रखा ।
"उसके
एक बार वह साध्वी अपने पुत्र के साथ भगवान के वहाँ काल संदीप नाम का विद्याधर आया और भगवान् से भगवान् ने सत्यकी की ओर इशारा करते हुए कहा - इस उसके पास आकर अवज्ञा करते हुए बोला - अरे । तू मुझे पैरों में गिराया ।
उस समय
समवसरण में गयी । पूछा- मुझे किससे भय है ?
सत्यकी से 1 तब काल संदीप मारेगा। यह कहकर उसे अपने
एक बार पेढाल परिव्राजक ने साध्वियों से सत्यकी को ले जाकर उसे विद्याएँ सिखाई । पाँच जन्म तक वह रोहिणी विद्या द्वारा मारा गया । छठे जन्म में जब आयुकाल केवल छह महिनों का रहा तब उसने उसे साधना छोड़ दिया। सातवें जन्म में वह सिद्ध हुई । वह उस सत्यकी के ललाट में छेदकर शरीर में प्रवेश गयी । देवता ने उस ललाटट-विवर को तीसरी आँख के रूप में परिवर्तित कर दिया । सत्यकी ने देवता की स्थापना की। उसने कालसन्दीप को मार डाला और वह विद्याधरों का राजा हो गया । तब से वह सभी तीर्थंकरों को वंदना कर नाटक दिखाता हुआ विहरण कर रहा है।
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पूर्व भारतीय अंचल में अवस्थित 'पावापुरी नगरी' का स्वामी था 'हस्तिपाल । राजा 'हस्तिपाल' भगवान् महावीर का अनन्य भक्त था । भगवान् महावीर ने हस्तिपाल ' की विशेष प्रार्थना पर उसकी रथशाला में अपना चतुर्मास किया । यह प्रभु का अंतिम चतुर्मास सिद्ध हुआ । इसी रथशाला में भगवान् महावीर ने अनशन किया। सोलह प्रहर के अनशन से कार्तिक कृष्णा अमावस्या की रात्रि में उसी रथशाला में निर्वाण प्राप्त किया ।
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