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( १८० ) भद्दे चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गह ओगिण्हर, ओगिहित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥२२३॥
भग० श ६ / उ ३३ / पृ० ४५७
जब जमाली पाँच सौ साधुओं के साथ श्रावस्ती नगरी में था - इधर भगवान् महावीर ब्राह्मणकुंड नगर के बाहर बहुशालक उद्यान में अनुक्रम से विचरते हुए यावत् सुखपूर्वक विहार करते हुए चंपानगरी के पूर्णभद्र उद्यान में पधारे और यथायोग्य अवग्रह ग्रहण करके तप और संयम से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे ।
२४. सुघोष नगर में
सुघोसं नगरं । देवरमणं उज्जाणं । वीरसेणोजक्खो । अज्जुणो राया । xxx ( तित्थयरागमणं )
- विवा
२/
सुघोष नामक नगर था । देवरमण नामक उद्यान था । वहाँ वीरसेन यक्ष का निवास था । अर्जुन राजा था । उस समय तीर्थंकर भगवान् महावीर स्वामी पधारे ।
२५ महापुर नगर में
महापुरं नयरं । रत्तासोगं उज्जाणं । रत्तपाओ जक्खो । बले राया। सुभद्दा देवी । महम्बले कुमारे । x x x
तित्थयरागमणं जावपुव्वभवो ।
- विवाक्षु २ / अ ७
महापुर नगर था ।
रक्ताशोक उद्यान था । उसमें रक्तपाद यक्ष का विशाल स्थान था । नगर में महाराज बल का राज्य था । उस समय तीर्थंकर भगवान् महावीर स्वामी पधारे ।
'२६ कनकपुर नगर में
कणगपुरं नयरं । सेयासोयं उज्जाणं । वीरभद्दो जक्खो । पियचंदो राया । सुभद्दा देवी | वेसमणे कुमारे जुवराया । सिरिदेवीपामोक्खा पंचसया । तित्थयरागमणं । धणवई जुवरायपुत्ते जाव पुग्वभवो । × × ×
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कनकपुर नगर था । श्वेताशोक नामक उद्यान था । यथायतन था । प्रियचंद्र राजा था । सुभद्रा नामकी देवी थी। महावीर स्वामी वहाँ पधारे ।
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- विवा० २ / ७
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उसमें वीरभद्र नामके यक्ष का उसी समय तीर्थंकर भगवान्
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