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( १७१ ) (ख) आलंभिका नगरी में पदार्पण
तेणं कालेणं तेणं समणे भगवं महावीरे जाव जेणेव आलभिया नयरी जेणेव संखवणे उजाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गह ओगिणिहत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावभाणे विहरइ ॥७॥
तएणं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ आलभियाए नयरीए संखवणाओ उज्जाणाओ पडिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥१५॥
-उवा अ०५ उस काल, उस समय में श्रमण भगवान महावीर जहाँ आलं भिका नगरी थी और जहाँ शंखवन उद्यान-वहाँ पधारे। पधार कर यथारूप अवग्रह गृहण कर संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित कर विचरने लगे।
अन्यदा श्रमण भगवान महावीर आलंभिका नगरी के शंखवन उद्यान से वहिर्गमन जनपद विहार करने लगे। (ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासक के समय में ) (ग) तेणं कालेणं समएणं आलभियानाम नयरी होत्था। वण्णओ। संखवणेचेदए । वण्णओ।xxx
तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं महावीरे जाव समोसढे, जाव परिसा पज्जुवासइ ।
तएणं समणे भगवं महावीरे अण्णया कयाइ आलभियाओ नगरीओ संखवणाओ बेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥१८५॥
-भग० श ११/उ १२/सू १७४, १७८/पृ० ५३०-३१ उस काल उस समय में आलं भिका नाम की नगरी थी। वहाँ शंखवन नामक उद्यान था । उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर वहाँ पधारे। यावत् परिषद् उपासना करती है। तुंगिका नगरी के श्रावकों के समान वे श्रमणोपासक थी भगवान का आगमन सुनकर हर्षित और संतुष्ट हुए । यावत् भगवान की पर्युपासना करने लगे।
__ पश्चात किसी समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी आलं भिका नगरी के शंखवन में उद्यान से निकल कर बाहर जनपद में विचरने लगे। (घ) तेणं कालेणं तेणं समएणं आलभिया नाम नगरी होत्था-वण्णओ। तत्थणं संखवणे नाम बेहए होत्था वण्णओ !xxx ॥१८॥ सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया ॥ १९०
-भग० श ११/उ १२/सू० १८६, १६०/पृ० ५३३, ३४
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