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उस काल उस समय में भ्रमण भगवान् महावीर का पदार्पण हुआ। परिषद् निकली । धर्मकथा कही ।
- १६ अन्यान्य देशों में विहार
(क) पण समणे भगवं महावीरे अण्णया कयाई रायगिहाओ णयराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ।
- अंत० व ६ / ३ / सू ५८
इसके बाद अर्जुलमाली को दीक्षित करने के बाद किसी समय श्रमण भगवान् महावीर राजगृह नगर के गुणशिलक उद्यान से निकलकर ब हर जनपद में विचरने लगे । (ख) तीर्थंकर काल का - प्रथम वर्ष का विहार
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मेघकुमार को पहली तथा दूसरी बार प्रव्रज्या देने के बाद
तपणं समणे भगवं महावीरे रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेहयाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवय विहारं विहरइ |
- नाया० श्रु १ / अ २
तत्पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर राजगृह नगर से, गुणसिलक चैत्य से निकले । निकलकर बाहर जनपदों में विहार करने लगे-- विचरने लगे ।
(ग) पोलासपुर नगर में विहार
तणं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ पोलासपुराओ नयराओ सहस्संबं वण्णओ पडिनिग्गच्छर, पडिनिग्गच्छित्ता बहिया जणवयबिहार बिहारs |
- उवा० अ ७/सू ११
श्रमण भगवान महावीर अन्य कोई दिवस पोलासपुर नगर से और सहस्राम्रवन उद्यान से निकलकर बाहर के देशों में विचरने लगे ।
(घ) देश-पर्वत - नगरादि में विहार
विश्वभव्योपकारार्थं व्रजत्येष नमोऽङ्गणे । नानादेशाद्विपूर्यादिन धर्मं चक्रपुरः सरः ॥
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- वीरवर्धच ० अधि १६ / श्लो ५४
सदैव धर्म चक्र जिनका अनुगामी है; ऐसे वीर पुत्र ने, संसार के समस्त जीवों के उपकार हेतु, गगनाङ्गण में भ्रमण करते हुये अनेकानेक देश, पर्वतांचल एवम् नगरादि में बिहार किया ।
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