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भगवान सुरभिपुर से विहार कर अनुक्रमतः पोतनपुर पधारे । वहाँ नगर के बाहर मनोरमोद्यान में समवसरण किया। वहाँ का राजा प्रसन्नचन्द्र भगवान् को वन्दनार्थं आया । और मोहनाश करने वाली भगवान् की देशना सुनी ।
'३ साकेत नगर में
ते काणं तेणं समएणं साएयं नामं नयरं होत्था | उत्तरकुरुउज्जाणे पासामिओजक्खो । मित्तनंदीराया । सिरिकंतादेवी । वरदत्ते । X X X I तित्थयरागमणं । × × × ।
उस काल में उस समय साकेत नामक नगर था । था जिसमें पाशामृग यक्ष का निवास स्थान था । वहाँ का श्रीकांता तथा पुत्र युवराज वरदत्त था ।
वहाँ श्रमण भगवान् महावीर का पदार्पण हुआ ।
- विया ० २ / अ १०
वहाँ उत्तरकुरु नाम का उद्यान राजा मित्रनंदी, उसकी पत्नी
४ हस्तिनापुर में -
शिवराजर्षि को विभंग ज्ञान उत्पन्न होने के बाद (अठाइयाँ वर्ष )
तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिणापुरे णामं णयरेहोत्था वण्णओ । तस्सणं हरियणापुरस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमेदिसीभागे, एत्थणं सहसंबवणे नामंउज्जाणे होत्या | x x x ५७ ।
(इकतीसवाँ वर्ष )
ते काणं तेणं समएणं सामी समोसढे, परिसा xxx । निग्गया । धम्मो कहिओ परिसा x x x पडिगणा । × × × ॥७४॥
- भग० श११ / ७० ६/०५७, ७४ / पृ०४६३, ५००
उस काल - उस समय में हस्तिनापुर नामक नगर था । उस हस्तिनापुर नगर के बाहर उत्तर-पूर्व दिशा में ( ईशान कोण ) सहसाम्र नामक उद्यान था । उस काल - उसी समय में, श्रमण भगवान् महावीर वहाँ पधारे । जनता धर्मोपदेश सुनकर वापस चली गई ।
५
उल्लुकतीर नगर में
तेणं कालेणं तेणं समएणं उल्लुयतीरे णामं णयरे होत्या, वण्णओ । एगजंबुए चेइय, वण्णओ । तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे जाव
परिसा पज्जुवासइ |
- भग० श१६ / उ ५ सू० ५४ / ०७२०
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