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भगवान महावीर स्वामी के मोक्ष चले जाने पर श्री गौतम, सुधर्मा और अन्तिम जम्बूस्वामी ये तीन केवली बासठ वर्ष तक धर्म का प्रवर्तन करते रहें ।
३. इस अवसर्पिणीकाल के जंबूस्वामी अंतिम केवली
भूयोऽपि श्रेणिकनृपो बभाषे भगवन्निह । कुत्रेदं केवलज्ञानं व्युच्छेदमुपयाख्यति ॥५१॥ तदाऽऽगाद् ब्रह्मलोकेन्द्र सामनिको महाद्युतिः । विद्युन्माली प्रभुं नन्तुं चतुर्देवीसमन्वितः ॥५२॥ तं दर्शयन् स्वाम्युवाच्छेत्स्यते ह्यत्र केवलम् । भूयोऽपि श्रेणिकोऽपृच्छत् किं स्याद्देवेषुकेवलम् ॥ ५३ ॥ स्वाम्यथाख्यदसौ च्युत्वा सप्तमेऽन्हि भविष्यति । वर्ष भदत्तस्य सू नुस्त्वत्पुरवासिनः ॥५४॥ भावी जंग्वाख्यया शिष्यो मक्छिष्यस्य सुधर्मणः । ततो नाग्रेसरमसावर्जयिष्यति केवलम् ॥५५॥
आढ्यस्य
राजाऽपृच्छत्पुनर्नाथमासन्नच्यवनोऽप्यसौ । कस्मान्न मन्दतेजस्को देवा हयन्तेऽल्पतेजसः ॥५६॥ स्वाम्यूचे सांप्रतमयं मन्दतेजाः सुरः खलु । अस्य तेजः पूर्वपुण्यैरत्युत्कृष्टं पुराह यभूत् ॥५७॥ एवमाख्याय भगवान् सर्वभाषाजुषा गिरा । विदधे दुरितप्रत्यादेशन धर्मदेशनाम् ॥५८||
भगवान महावीर का राजगृही पदार्पण होता है । भगवान का दर्शन करता है ।
तत्पश्चात् श्रेणिक राजा भगवान से पूछा - हे भगवन् ! केवलज्ञान का उच्छेद कब होगा ?
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- त्रिशलाका० पर्व १० / सर्ग ६
श्रेणिक राजपुत्रों के परिवार
उस समय महा कांतिवाला विद्युन्माली ब्रह्मदेवलोक के इन्द्र का सामानिक देव स्वयं की चार देवियों के साथ भगवान को नमस्कार करने के लिए आया था । उसको बताकर भगवान बोले- इस पुरुष से केवलज्ञान उच्छेद को प्राप्त होगा । अर्थात् यह अन्तिम केवली
होगा ।
तब श्रेणिक राजा विस्मित होकर बोला- क्या देवों को भी केवलज्ञान उत्पन्न होता है ।
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