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श्रमण भगवान महावीर के समय में मोक्ष जाने वालों के लिए दो प्रकार की भूमिका थी। यथा-१-युगान्तरकृत भूमिका, और २-पर्यायांतकृत भूमिका ।
युगान्तर कृत भूमिका अर्थात् जो लोग अनुक्रम से मोक्ष प्राप्त करते हैं ।
पर्यायान्तकृतभूमिका अर्थात् भगवान के केवली होने के बाद जो लोग मुक्ति प्राप्त करते है उनकी मोक्ष परत्व-पर्यायांत कृत भूमिका कही जाती है ।
भगवान के तीसरे पुरुष तक युगान्तर कृतभूमिका थी अर्थात सर्वप्रथम भगवान महावीर मोक्ष गये। उसके बाद उनका कोई शिष्य मोक्ष गया और बाद में उनके प्रशिष्य अर्थात जंबू स्वामी मोक्ष गये ।
__ यह युगान्तरकृत भूमिका जंबू स्वामी तक ही चली। उसके बाद बंध हो गयी।
__और भगवान महावीर के केवली होने के चार वर्ष व्यतीत होने के बाद कोई एक मोक्ष गये। अर्थात भगवान को केवली होने के बाद चार वर्ष बाद मुक्ति का मार्ग बहता रहा और जंबू स्वामी तक चला। ६. विविध संकलन (क) वद्धमाणसामी ( वर्तमानस्वामी )--धर्मो० पृ० ११०
xxx अण्णया समोसरिओ समुप्पन्नं नाणाइसओ भूवणभूसणो वद्धमाणसामी | xxx।
एक बार दशाणपुर नगर में वर्द्धमान स्वामी-मगवान महावीर का पदार्पण हुआ। (ख) वड्ढमाणपरिणामे ( वर्धमानपरिणाम)-भग० श २५/उ७ सू ५०३
समाइयसंजएणं भंते ! किंवड्ढमाणपरिमाणे होज्जा ? हायमाणपरि णामे ? अवटियपरिणामे ?
गोयमा ! षड्ढमाणपरिणामे जहापुलाए । एव जावपरिहारविसुद्धिए । वर्द्धमान परिणाम-बढ़ता हुआ परिणाम ।
सामायिक चारित्र-वर्द्धमान परिणामी, हीयमान परिणामी और अवस्थित परिणामी भी होते है। ७. भगवान् महावीर और अच्छेरे (क) दस अच्छेरगा पन्नत्ता, तंजहा
संगहणी-गाहा उवसग्ग गम्भहरणं, इत्थीतित्थं अभाविया परिसा । कण्हस्स अवरकंका, उत्तरणं चंदसूराणं ॥१॥
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