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स्व. श्री ताजमलजी बोथरा को भी हम भूल नहीं सकते । जिनका कोश कार्य में बराबर सहयोग रहा। जबरमलजी भंडारी जो हमारी संस्था को मार्ग-दर्शन देते रहे है एवं इस कोश को प्रकाशित करने में तन, मन, धन से सहयोग देते रहे है - उनके प्रति हम अत्यन्त कृतज्ञ हैं । समिति आपकी सेवाओं को सदैव स्मरण रखेगी।
हमारी समिति के द्वारा प्रकाशित ४ पुस्तकें स्टोक में है। हमारी समिति के निर्णयानुसार १००) देने वाले सञ्जनों को १३०) रु. की निम्नलिखित पुस्तकें दी जाती है ।
१-मिथ्यात्वीका आध्यात्मिक विकास २-वर्धमान जीवन कोश, प्रथमखण्ड
५०) ३- , , द्वितीयखण्ड
६५)
कतिपय व्यक्तियों ने अग्रिम ग्राहक बनकर हमारा उत्साह बढ़ाया है और हमें आशा है कि सभी जैन बन्धु इस कार्य में सहयोगी होंगे।
मेरे सहयोगी-जैन दर्शन समिति के सभापति श्री अभयसिंह सुराना, श्री नवरतन सुराना, उपसभापति श्री मोहनलालजी बैद, श्री मांगीलाल लूणिया, श्री धर्मचन्द राखेचा, श्री बच्छराज सेठिया, श्री चन्दनमल मणोत, श्री जंवरीमल बेद, श्री जबरमल भंडारी आदि समिति के उत्साही सदस्यों, शुभचिन्तकों एवं संरक्षकों की साहस और निष्ठा का उल्लेख करना मेरा कर्तव्य है। जिनकी इच्छाएं और परिकल्पनाएँ मुर्तरूप में मेरे सामने आ रही है । स्व० श्री सूरजमल जी सुराना का भी हमें अभूतपूर्व सहयोग रहा है ।
जैन दर्शन समिति ने जैन दर्शन के प्रचार करने के उद्देश्य से इसका मूल्य केवल ७५.) रखा है। जैन-जेनेतर सभी समुदाय से हमारा अनुरोध है कि वर्धमान जीवन कोश तृतीय खण्ड को क्रय करके अंतत अपने संप्रदाय के विद्वानों, भंडारों में, पुस्तकालयों में उसका यथोचित वितरण करने में सहयोग दें ।
__ 'जैन पदार्थ विज्ञान पुद्गल' नामक पुस्तक स्व० श्री बांठिया ने बड़ी गंभीरता से लिखी। इसकी परिचर्चा देश-विदेश में हुई।
२०४५ के मर्यादा महोत्सव के अवसर युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी ने स्व. मोहन लाल जी बांठिया को उनकी सेवाओं का मूल्यांकन करते हुए 'जैन तत्त्ववेत्ता' की उपाधि के विभूषित किया। २०४६ के मर्यादा महोत्सव के समय योग क्षेम वर्ष में भी आपने पुनः याद किया। पुनः 'जैन तत्ववेत्ता' की उपाधि से विभूषित किया ।
सुराना प्रिन्टिग प्रेस के मालिक श्री भागचन्द सुराना तथा उनके कर्मचारी भी धन्यवाद के पात्र है। जिन्होंने अनेक बाधाओं को होते हुए भी प्रकाशित में सक्षम रहे। कलकत्ता
-हीरालाल सुराणा, मन्त्री ६-११.६०
जैन दर्शन समिति
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