SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १०५ ) फिर जमालीकुमार को आगे करके उसके माता-पिता श्रमण भगवान महावीर की सेवा में उपस्थित हुए और भगवान को तीन बार प्रदक्षिणा करके इस प्रकार बोले-"हे भगवन् यह जमालीकुमार हमारा इकलौता, प्रिय और इष्टपुत्र है। इसका नाम सुनना भी दुर्लभ है तो दर्शन दुर्लभ हो-इस में तो कहना ही क्या ! जिस प्रकार कीचड़ में उत्पन्न होने और पानी में बड़ा होने पर भी कमल पानी और कीचड़ में निर्लिप्त रहता है, इसी प्रकार जमाली कुमार भी काम से उत्पन्न हुआ और भोगों में बड़ा हुआ, परन्तु वह काम में किंचित भी आसक्त नहीं है। मित्र, ज्ञाति, स्वजन संबंधी और परिजनों में लिप्त नहीं है। हे भगवन ! यह जमालिकुमार संसार के भय से उद्विग्न हुआ है। जन्म-मरण के भय से भयभीत हुआ है। यह आप के पास मुंडित होकर अनगार धर्म स्वीकार करना चाहता है। अतः हे भगवन् ! हम यह शिष्य रूपी भिक्षा देते हैं । आप इसे स्वीकार करें । तएणं समणे भगवं महावीरे जमालिं खत्तियकुमारं एवं वयासी-अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं ! तएणं से जमाली खत्तियकुमारे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हळू-तुसमणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव णमंसित्ता उत्तरपुरस्थिमं दिसिभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता सममेव आभरणमलालंकारं ओमुयइ। तएणसा जमालिस्स खत्तियकुमारस्स माया हंसलक्खणेण पडसाडएण आभरण-मल्लालंकारं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता हार-वारि जाव विणिम्मुयमाणी-विणिम्मुयमाणी जमालि खत्तियकुमारं एवं वयासी-जइयव्वं जाया ! घडियवं जाया! परिक्कमियध्वं जाया। अस्सिं च णं अट्ठ णो पमाएयव्वंति कट्ठ जमालिस्स खत्तियकुमारस्स अम्मापियरो समण भगवं महावीरं वदंति, णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता जामेव दिसं पाडब्भूया तामेव दिसं पडिगया। -भग० श ६/उ ३३/सू० २११ से २१३ तत् पश्चात् श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने जमाली क्षत्रियकुमार से इस प्रकार कहा-“हे देवानुप्रिय ! जिस प्रकार तुम्हें सुख हो-वैसा करो। किन्तु विलम्ब मत करो। भगवान के ऐसा कहने पर जमाली क्षत्रियकुमार हर्षित और तुष्ट हुआ। और भगवान को तीन बार प्रदक्षिणा कर यावत वंदना-नमस्कार कर, उत्तर-पूर्व (ईशाणकोप) में गया। उसने स्वयमेव आभरण, माला और अलंकार उतारे। उसकी माता ने उन्हें हंस के चिह्नवाले पटशाटक ( वस्त्र) में ग्रहण किया। फिर हार और जलधारा के समान आंसू गिराती हुई अपने पुत्र से इस प्रकार बोली-हे पुत्र ! संयम में प्रयत्न करना, संयम में पराक्रम करना । संयम पालन में किंचित मात्र भी प्रमाद मत करना।" १४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy