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उनके बाद लकड़ी, तलवार और भाला लिये हुए पदाति पुरुष चले । बहुत से युवराज, धनिक, तलवार यावत् सार्थवाह आदि चले ।
इस प्रकार क्षत्रियकुंडग्राम, नगर के बीच में चलते हुए नगर के बाहर बहुशालक उद्यान में श्रमण भगवान महावीर के पास जाने लगे ।
तरणं तस्स जमालिस खत्तियकुमारस्स खत्तियकुंडग्गामं णयरं मज्झंमज्झेणं णिग्गच्छमाणस्स सिंघाडग-तिय- चउक्क जाव पहेसु बहवे अत्यत्थिया जहा ओववाइए, जाव अभिनंदिया य अभित्थुणता य एवं वयासी - 'जय-जय दा ! धम्मेणं, जय-जय णंदा । तवेणं, जय-जय णंदा ! भद्द' ते अभग्गेहि णाणदंसणं वरितमुत्तमेहि, अजियाह जिणाहिं इंदियाइ, जियं पालेहि समणधम्मं : जियविग्घोवि य वसाहि तं देव ! सिद्धि मज्झे णिहणाहि य राग-दोसमल्ले, तवेणं धिधणियबद्धकच्छे, महाहि य अट्ठकम्मसत्तू झाणणं उत्तमेणं सुक्केणं, अप्पमत्तो हराहि आराहणपडागं व धीर ।
उनके पीछे
तेलोक्करं गमज्झे, पावय वितिमिरमणुत्तरं केवलं व णाणं, गच्छ य मोक्खं परं पदं जिणवरोवदिट्ठेणं सिद्धिमग्गेण अकुडिलेण, हंता परीसहचमूं, अभिभविय गामकंटकोवसग्गाण, धम्मे ते अविग्धमत्थू तिकट्ट, अभिण दंति य अभिधुतिय ।
- भग० श ६ / उ ३३ सू २०८
क्षत्रिय कुण्डग्राम के बीच से निकलते हुए जमाली कुमार को शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क यावत् राजमार्गों में बहुत से धनार्थी और कामार्थी पुरुष, अभिनन्दन करते हुए एवं स्तुति करते हुए इस प्रकार कहने लगे
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“हे नन्द ( आनन्द-दायक ) धर्म द्वारा तेरा जय हो । नन्द ! तप से तुम्हारी जय हो । हे नन्द ! तुम्हारा भद्र ( कल्याण ) हो । हे नन्द ! अखंडित उत्तम ज्ञान, दर्शन और चारित्र द्वारा अविजित ऐसी इन्द्रियों को जीते और श्रमण धर्म का पालन करे । धैर्य रूपी कच्छ को मजबूत बांधकर सर्व विघ्नों को जीते और श्रमण धर्म का पालन करें। धैर्य रूपी कच्छ को मजबूत बाँध कर सर्व विघ्नों को जीते । इन्द्रियों को वश करके परीषह रूपी सेना पर विजय प्राप्त करें । तप द्वारा राग द्वेष रूपी मल्लों पर विजय प्राप्त करें ।
हे धीर! तीन लोक रूपी विश्व-मंडप में आप आराधना रूपी पताका लेकर अप्रमत्तता पूर्वक विचरण करें और निर्मल विशुद्ध ऐसे अनुत्तर केवलज्ञान प्राप्त करें तथा जिनवरोपदिष्ट सरल सिद्धि मार्ग द्वारा परम पद रूप मोक्ष को प्राप्त करें ।
इस प्रकार लोग अभिनन्दन
तुम्हारे धर्म मार्ग में किसी प्रकार का विघ्न नहीं हो । और स्तुति करते हैं ।
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