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भगवान के पास धर्म श्रवण कर जमाली क्षत्रियकुमार को उस पर भद्धा, प्रतीति और रुचि हुई। वह उसके अनुसार प्रवृत्ति करने को तत्पर हुआ और अपने माता-पिता से दीक्षा की आज्ञा मांगने लगा।
तं इच्छामि णं अम्मयाओ ! तुब्भेहिं अन्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगपओ महावीरस्स जाच पब्वइनए।
तएणं जमालि खत्तियकुमारं अम्मापियरो जाहे णो संचाएंति विसयाणुलोमाहि य विसयपडिकूलाहि य बहूहिं आघवणाहि य, पण्णवणादि य आघवित्तए वा,जाव विण्णवित्तए घा, ताहे अकामाई चेव जमालिस्स खत्तियकुमारस्स णिक्खमणं अणुमण्णित्था।
-~भग० श६/उ३३ सू १६७,१७६
हे माता-पिता ! आप मुझे दीक्षा की आज्ञा दीजिये। बाप की बाशा होने पर मैं भमण भगवान महावीर स्वामी के पास दीक्षा लेना चाहता हूँ।
जब जमालीकुमार के माता-पिता उसे विषय के अनुकूल और प्रतिकूल बहुत सी उक्तियाँ, प्रशप्तियाँ, संज्ञप्तियाँ और विज्ञप्तियों द्वारा उसे समझाने में समर्थ नहीं हुए, तब बिना इच्छा के जमालीकुमार को दीक्षा लेने की आशा दी।
तएणं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया कोडुंबियपुरिसे सहावे सहावित्ता एवं पयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! सरिसयं, सरित्तयं, सरिन्धयं, सरिसलावण्ण-रूव-जोवण्ण-गुणोववेयं, एगाभरण-वसणगहियणिज्जोयं कोडुबियवरतरुणसहस्सं सहावेह ।
___तएणं ते कोडुंबियपुरिसा जाव पडिसुणित्ता खिप्पामेव सरिसयं, सरित्तयं जाव सहावेंति। तएणं ते कोडुंबियपुरिसा जमालिस खत्तियकुमारल्स पिउणा कोडुंबियंपुरिसेहिं सहाविया समाणा हहतुट्ठा हाया, कयबलिकम्मा, कयकोउयमंगल-पायच्छित्ता एगाभरणवसण-गहिय-णिज्जोया जेणेव जमालिस्स । खत्तियकुमारस्स पिया तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता करयल जाप वद्धावेत्ता एवं क्यासी-संदिसंतुएं देवाणुप्पिया । जं अम्मेहि करणिज्ज ।
तएणं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्सपिया तं कोडुबियवरतरुणसहस्सपि एवं वयासी-तुम्भेणं देवाणुप्पिया। ण्हाया कयबलिकम्मा जाष गहियणिज्जो जमालिस्स खत्तियकुमारस्स सीयं परिवहेह ।
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