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( ६३ )
भगवान ने उस महापरिषद् को और उन श्रमणोपासकों को धर्मोपदेश दिया यावत् परिषद् वापस चली गई ।
(छ) तेणं कालेणं तेणं समपणं कोसंबी णामं णयरी होत्था । वण्णओ । चंदोवतरणे चेइए । Xxx । तत्थणं कोसंबीए णयरीप x x x उदायणेणामं राया होत्या | x x × ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे, जावपरिसा पज्जुवासइ xxx
तणं समणे भगवं महावीरे उदायणस्स रण्णो मियावईए देवीए जयंतीए समणोवासियाए तीसेय महतिमहा० जाच धम्मं परिकहेइ, जाव परिसा पडिगया, उदाय पडिगए, मियावईदेवी वि पडिगया ।
- भग० श १२ / उ२ सू ३०, ३१,४०
उस काल उस समय में कौशाम्बी नाम की नगरी थी । चंद्रावतरण उद्यान था । उस कौशाम्बी नगरी में उदायन नाम का राजा था। उस काल उस समय में श्रमण भगवान् महावीर वहाँ पधारे। यावत् परिषद् पर्युपासना करने लगी ।
श्रमण भगवान् महावीर ने उदापन राजा, मृगावती देवी, जयंती श्रमणोपासका और महापरिषद् को धर्मोपदेश दिया । यावत् परिषद् लौट गई।
उदापन राजा व मृगावती भी चले गये ।
(ज) तेणं कालेणं तेणं समएणं आलभिया णामं णयरी होत्था | X x संखवणे चेइए | × × × ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे । जावपरिसा पज्जुवास | X XX । तरणं समणे भगवं महावीरे तेसिं लमणोवास गाणं तीसेय महति० धम्मकहा, जाव आणाए आराहए भवइ ।
-- भग श ११ / १२ सू १७४, ७८
उस काल और उस समय में आलंभिका नाम की नगरी थी। वहाँ शंखवन नामक
उद्यान था ।
उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर वहाँ पधारे । यावत् परिषद् उपासना करती है । भगवान् उन आगत भ्रमणोपासकों को और आई हुई महापरिषद् को यावत आज्ञा के आराधक होवे - यहाँ तक धर्मोपदेश दिया ।
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