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( ६१ )
भाग के स्थानों में लोगों के मुख से भगवान् का आगमन सुनकर परिषद् धर्मकथा सुनने के लिए श्रद्धा, भक्ति तथा विनय पूर्वक भगवान की पर्युपासना करने लगी ।
.२ जनमानस का आगमन
(क) समणे भगवं महावीरे जाव सव्वण्णू सव्वदरिसी माहणकुंडग्गामस्स teri बहिया बहुसालए चेइए अहापडिरूवं उग्गहं जाव विहरद्द | xxx
तरणं समणे भगवं महावीरे जमालिस्स खत्तियकुमारस्स, तीसे य महतिमहालियाए इसि० जाव धम्मकहा- जाव परिसा पडिगया ।
- भग० श ६ / उ ३३ सू/ १५७, १६३
श्रमण भगवान् महावीर - इस ब्राह्मण कुंडग्राम नगर के बाहर बहुशाल नाम के उद्यान मैं यथायोग्य अवग्रह ग्रहण करके यावत् विचरते हैं ।
श्रमण भगवान् महावीर ने जमाली क्षत्रिय कुमार को तथा उस बड़ी ऋषिगण आदि की महापरिषद् को धर्मोपदेश दिया ।
धर्मोपदेश श्रवणकर वह परिषद् वापस चली गई ।
(ख) ततेणं ते महत्तरगा जेणेव समणे भगवं महाचीरे तेणेव उवागच्छर उवागच्छत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो वंदति नर्मसंति वंदित्ता नमसित्ता नाम - गोयं पुच्छंति नाम गोयं पुच्छित्ता नाम- गोयं पधारं तिxxx |
- दसासु० दशा १० सू ४
होता है
श्रमण भगवान् महावीर का राजगृह नगर के बाहर गुणशैल नामक चैत्य में पदार्पण
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तब वे आराम आदि के अध्यक्ष जहाँ श्रमण भगवान् महावीर थे वहाँ आये और उन्होंने भगवान् को तीन बार प्रदक्षिणा कर उनकी वंदना की और उनको नमस्कार किया । वंदना और नमस्कार करके अनन्तर उनका नाम और गोत्र पृछा और उनको हृदय में धारण किया ।
(ग) तेणं कालेणं तेणं समरणं वाणियग्गामे णामं णयरे होत्था । वण्णओ । दूरपिलासर चेइए । सामी समोसढे । परिसा णिग्गया । धम्मो कहिओ । परिसा पडिगया ।
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- भग० श ६ / ७३२ / सू१
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