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आर्यों! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए तीन दंडों- मनोदंड, वचनदंड, कायदंड का निरूपण किया है । इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए तीन प्रकार के दंडों- मनोदंड, वचनदंड और कायदंड का निरूपण करेंगे ।
(घ) से जहाणामए अजो ! मए समणाण निग्गंथाण वत्तारि कसाया पण्णत्ता, तंजहा
कोहकसाए, माणकसाए, मायाकसाए, लोभकसाए ।
एवमेव महापमेचि अरहा समणाण णिग्गंथाण चत्तारि कसाए पण्णवेहिति तं जहा-
कोहकसायं, माणकसायं, मायकसायं, लोभकसायं ।
(च) से जहा णामए अजो ! मए समणाण' णिग्गंथाण पंच कामगुणा पण्णत्ता, तंजहा
सद्दे, रूवे, गंधे, रसे, फासे ।
एषामेव महापडमेचि अरहा समणाणं णिग्गंथाण पंचकामगुणे पण्णवेहिति, तंजहा-
सहं, रूवं, गंधं, रसं, फासं 1
- ठाण० स्था ६ / सू ६२ / पृ० ८६८ कषायों - क्रोधकषाय, मानकषाय, मायाइसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमणमानकषाय, मायाकषाय और लोभकषार्यो
आर्यों। मैंने श्रमण-निग्रंथों के लिए चार ! कषाय और लोभकषाय का निरूपण किया है । निर्ग्रन्थों के लिए चार कषायों - क्रोधकषाय, का निरूपण करेंगे ।
आर्यो ! मैंने श्रमण निग्रंथों के लिए पाँच कामगुणों - शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श - का निरूपण किया है। इसी प्रकार अर्हतु महापद्म भी श्रमण निग्रंथों के लिए पाँच कामगुणों— शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श का निरूपण करेंगे ।
(छ) से जहाणामए अजो ! मए समणाण' निग्गंथाण छज्जीवणिकाया पण्णत्ता, तंजहा - पुढबिकाइया, आउकाइया, ते काइया, चाउकाइया,
वणस्सइकाइया, तसकाइया ।
एवमेव महापमेवि अरहा समणाण निग्गंथाण छज्जीवणिकाए पण्णवेहिति, तंजहा - पुढविकाइए, आउकाइए, तेउकाइए, वाउकाइए, वणस्सइकाइए, तसकाइए ।
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-ठाण० स्था ६ / सू ६२ / ८६८
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