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( ६७ ) सन सया केवलनाणीणं संभिन्नवरनाणदसणधराणं उक्कोसिया केवलनाणि संपया होत्था।xxx। सत्त सया वेउव्वीणं अदेवाणं देविड्ढिपत्ताणं उक्कोसिया घिउन्धिसंपया होत्था ।xxx। पंचसया विउलमईणं अड्ढाइज्जेसु दीवेसु दोसु य समुहेसु सण्णीणं पंचिंदियाणं पजत्तगाणं जीवाणं मणोगए भावे जाणमाणाणं उक्कोसिया विउलमई संपया होत्था ।xxx। चत्तारिसयावाईणं सदेवमणुयासुराए परिसाए वाए अपराजियाणं उक्कोसिया वाइसंपया होत्था।
-कप्प० सू १३७ से १४२ ___ श्रमण भगवान महावीर के जिन नहीं होते हुए भी जिनके समान सन्निपात और जिनकी तरह सच्चा स्पष्टीकरण करने वाले तीन सौ चतुर्दश पूर्वो के ज्ञाता थे। विशेष प्रकार की लब्धि वाले तेरह सौ अवधि ज्ञानी थे। संपूर्ण ज्ञान और दर्शन को प्राप्त सातसौ केवल ज्ञानी थे। सातसो वैक्रियलब्धिधारी थे। पाँच सौ विपुलमति मनः पर्यव ज्ञानी थे । तथा चार सौ वादी थे। .१४ (क) गण और गणधर
से जहाणामए अजो! मम णव गणा एकारस गणधरा। एवामेव महापउस्सवि अरहतो-णव गणा एगारस गणधरा । भविस्संति।
-ठाण० स्था ६/६२/८७१ आर्यो ! भगवान महावीर के नौ गण और ग्यारह गणधर थे। .
.. .१५ तीर्थोत्पत्ति(क) एत्थावसप्पिणीए चउत्थकालस्स चरिमभागम्मि ।
तेत्तीस वास अडमासपण्णदसदिवससेसम्मि। वासस्स पढममासे सावणणामम्मि बहुलपडिवाए। अमिजीणक्खत्तम्मि य उप्पत्ती धम्म तित्थस्स । सावण बहुले पाडिवरुद्दमुहुत्ते सुहोदये रविणो। अभिजिस्स पढमजोए जुगस्स आदी इमस्स पुढं ।
-तिलोप० अघि १/गा ६८-७०
इस अवसर्पिणी काल के चतुर्थ काल के अन्तिम भाग में तैंतीस वर्ष, आठ मास और . पंद्रह दिन शेष रहने पर वर्ष के प्रथम मास श्रावण कृष्णा प्रतिपदा के दिन अभिजिद नक्षत्र के समय धर्म-तीर्थ की उत्पत्ति हुई है ।
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