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तुंषाक ग्राम से विहार कर भगवान कूपिका नामक ग्राम के पास आये। वहाँ आरक्षकों ने प्रच्छन्न चरपन की भांति से गोशाला सहित भगवान् को तंग किया। निरपराधी कोई रूपवान्, शांत और युवान देवार्य को गुप्तचर की भांति से आरक्षक मारते हैं। ऐसा वार्तालाप लोकों में प्रसारित किया। उस वार्तालाप को श्री पार्श्वनाथ की प्रगल्भा और विजया नाम की दो शिष्या-जो चारित्र को छोड़कर निर्वाहार्थ परिवाजिका हुई। उस ग्राम में रहती थी उन्होंने सुना ।
इस कारण उनके संदेह हुआ कि वीर प्रभु तो नहीं है ऐसा संदेह करती हुई वहाँ आयी।
वहाँ भगवान को उस स्थिति में देखा। तुरन्त उन्होंने प्रभु को वंदना की और आरक्षकों को कहा कि-"अरे मुर्यो ! ये सिद्धार्थ राजा के पुत्र श्री महावीर है। क्या आप नहीं जानते हैं। अब जल्दी उन्हें छोड़ दीजिये- क्योंकि यह खबर जब इन्द्र सुनेगा तब आपके ऊपर प्राण हरण करने वाला वन छोड़ेगा।
ऐसा सुनकर उन्होंने भगवान को छोड़ दिया और बारम्बार क्षमा-याचना की।
(ख) ततो सामी कूवियं नाम संनिवेसं गतो, तत्थ चारियत्तिकाउण धेप्पति पिडिज्जति य, तत्थ लोगसमुल्लावो-अहो देवजगो रूवेण जुम्वणेण य अप्रतिमो चारियत्ति काउं गहितो, तत्थ विजया पगम्भा य दोन्नि पासनाहं तेवासिणीतो परिवाइयातो, लोगस्स पासे सोऊण तित्थगरो पन्वइयो वच्चामो ता पलाएमो, को जाणइ होज्जा ?, ताहे तेहिं मोहतो, दुरप्पा न याणह चरमतित्थयर सिद्धत्थरायपुत्तं, अज्ज ये सक्को उचालभिस्सइत्ति, ताहे मुक्को खामितो य, ततो मुक्का समाणा निग्गया, xxx कृविय चारिय मुक्खो विजय पगम्भा य पत्ते।
-आव• निगा ४८४ मलय टीका-ततो भगवान् कूपिका नाम संनिवेशस्तं गतः, तत्र चारिकावेताविति ग्रहणं, ततो मोक्षो विजयाप्रगल्भावचनतः
.११ उदक पेढाल पुत्र-भावितिथंकर
एसणं अज्जो। कण्हे वासुदेवे, रामे बलदेवे, उदए पेढालपुत्ते, पुटिले, सतए गाहावती, दारुए णियंठे, सच्चई णियंठीपुत्ते, सावियबुद्ध अंब (म्म १ ) डे परिव्वायए, अज्जावि णं सुपासा पासावच्चिज्जा। आगमेस्साए उस्सप्पिणीए चाउज्जामं धम्म पण्णवइत्ता सिज्झिहिति, बुझिहिंति मुञ्चिहिति परिणिव्वाइहिंति सव्वदुक्खाणं अंतंकाहिति ।
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