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( २७ ) वीरंगए वीरजसे, संजय एणिज्जए य रायरिसी। सेये सिवे उहायणे, तह संखे कासिवद्धणे ॥
--ठाणस्था ८/सू ४१ भगवान महावीर के पास निम्नलिखित आठ राजाओं ने दीक्षा ग्रहण की।
१-वीराङ्गक, २-वीरयश, ३-संजय, ४-एणेयक, ५ - श्वेत, ६-शिव, ७ ~~ उदायन और ८-शंख । .१.८ साधुओं की एक कड़ी
पूषधरसिक्खकोहीकेवलिवेकुन्विविउलमदिवादी। पत्तेक सत्तगणा सव्वाणं तित्थकत्ताणं ॥
-तिलोप० अधि ४/गा १०६८ सब तीर्थकरों में से प्रत्येक तीर्थकर के पूर्वधर, शिक्षक, अवधिज्ञानी, केवली, विक्रियाऋदि के धारक, विपुलमति और वादी-इस प्रकार ये सात संघ होते हैं। अतः भगवान महावीर के सात संघ थे।
तिसयाई पूव्वधरा णवणउदिसयाइ होति सिक्खगणा । तेरससयाणि ओही सत्तसयाई पि केवलिणो॥ इगिसयरहिदसहस्सं वेकुव्वी पणसयाणि विउलमदी। चत्तारिसया वादी गणसंखा वड्ढमाणजिणे ॥ वे ६००, वि ५००, वा ४०० ।
-तिलोप० अधि ४/गा ११६०-६१ वर्धमान जिन के सात गणों में से पूर्वधर ३००, (२) शिक्षक गण ६६०० (३) अवधिज्ञानी १३००, (४) केवली ७००, (५) विक्रियाऋद्धिधारी ६००, (६) विपुलमति ५००, (७) वादी ४०० थे। .१.९ गण और गणधर (क) वद्धमान स्वामिनो नव xxx गणानां मान-परिमाणं।
-आव० निगा २६०/टीका एक्कारस उ गणहरा वीरजिणिदस्स सेसयाणं तु।
-आव निगा २६१ टीका-गणधरा नाम मूलसूत्रकर्तारः, तेच वीरजिनस्य एकादश, गणास्तु नव xxx प्रतिगणधरं भिन्न-भिन्न वाचनाचारक्रियास्थत्वात् ।
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