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( १७ )
कई पदानुसारी (= सूत्र के एक ही पद ज्ञात होने पर उस सूत्र के अनुकूल सैंकड़ों पदों का स्मरण कर लेने की जान लेने की शक्ति के स्वामी ) थे। कई संभिन्न श्रोता (=बहुत से भिन्न-भिन्न जाति के शब्दों को, अलग-अलग रूप से, एक साथ श्रवण करने की शक्तिवाले या सभी इन्द्रियों के द्वारा शब्दादि पाँचों विषयों को ग्रहण करने की शक्तिवाले अर्थात किसी भी एक इन्द्रिय से पाँचों विषयों को ग्रहण करने की शक्तिवाले ) थे।
-कई क्षीराश्रव (= श्रोताओं के लिए दूध के समान मधुर, कान और मन को सुखकर वचन शक्तिवाले ) थे। कई मधु आश्रय (= मधु के समान सभी दोषों को मिटाने में निमित्तरूप और प्रसन्नकारक वाचिक शक्तिवाले थे। कई सर्पिराश्रव (= घी के समान अपने विषय में श्रोताओं का स्नेह सम्पादित करने की शक्तिवाले ) थे। कई अक्षीण-महानसिक (प्राप्त अन्न को जहाँ तक स्वयं न खाले, वहाँ तक सैकड़ों-हजारों को देनेपर भी वह अन्न समाप्त न हो, ऐसी लब्धि के धारक ) थे।
इसी प्रकार जुमति (=मात्र सामान्य रूप से मन की ग्राहिका मतिवाले ) थे। कई विपुलमति ( विशेषता सहित चिन्तित द्रव्य से जानने की शक्ति वाले ) थे ।
कई विकुर्वण-ऋद्धि ( =नाना भांति के रूप बनाने की शक्ति ) से संपन्न थे। कई चारण (= गति संबंधी ऋद्धिवाले ) विद्याधर (= प्रज्ञप्ति आदि विद्याओं के धारक ) आकाशातिपाती (गगन गामिनी शक्तिवाले ) थे ।
.०१.३ औधिक स्थविरों का विवेचन
(क) तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे थेरा भगवंतो--जाइसंपण्णा कुलसंपण्णा बलसंपण्णा रूवसंपण्णा विणयसंपण्णा णाणसंपण्णा दंसणसंपण्णा चरित्तसंपण्णा लज्जासंपण्णा लाघवसंपण्णा। ओयंसी तेयंसी बच्वंसी जसंसी। जियकोहा जियमाणा जियमाया जियलोभा जिइंदिया जियणिहा जियपरीसहा जीवियासमरणभयविप्पमुक्का । वयप्पहाणा गुणप्पहाणा करणप्पहाणा चरणप्पहाणा णिग्गहष्पहाणा निच्छयप्पहाणा अजवष्पहाणा महवप्पहाणा लाघवप्पहाणा खंतिप्पहाणा मुत्तिप्पहाणा विज्जापहाणा मंतप्पहाणा अयप्पहाणा बंभप्पहाणा नयप्पहाणा नियमप्पहाणा सच्चप्पहाणा सोयप्पहाणा। चारुवण्णा लज्जातवस्सीजिइंदिया सोही अणियाणा अप्पोसुया अबहिल्लेसा अप्पडिलेस्सा सुसामण्णरया दंता-इणमेव णिग्गंथं पाययणं पुरओकाउं विहरति । [क्वचित्-बहूणं आयरिया बहूणं उवमाया बहूणं गिहत्थाणं पन्चइयाणं च दीवो ताणं सरणं गई पइठ्ठा ]
-ओव० सू २५
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