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वर्धमान जीवन-कोश
उसके चंदन जैसे शीतल विनय वचन और शील से अनुरंजित हुए श्रेष्ठि ने परिवार के साथ मिलकर उसका चन्दना नाम दिया।
अनुक्रम से करभ जैसो उहवाली वह बाला यौवनवय को प्राप्त हुई। उस समय समुद्र की तरह पूर्णिमा की रात्रि हर्ष को प्रदान करती है उसी प्रकार वह श्रेष्ठि को हर्ष को प्रदान करने लगी। स्वभाव से ही रूपवती होनेपर यौवन को प्राप्त होने से विशेष रूपवती हई चंदना को देखकर मूला सेठाणी मन में ईर्ष्या लाकर इस प्रकार विचार करने लगी-श्रेष्ठि ने इस कन्या को पुत्री की तरह रखा है परन्तु अब उसके रूप से मोहित होकर कदाचित् सेठ उसके साथ विवाह-संबध करे तो मैं जीवित हाते हुए भी भृत समान हो जाऊँगी।
इस प्रकार स्त्रीपन को छाजती तुच्छ हृदय को लिये हुए वह मूला उस समय से रात्रि-दिन उदास रहने लगी।
एक समय सेठ ग्रीष्म ऋतुके ताप से पीड़ित हाकर दूकान से घर आया। उस समय दैवयोग से कोई सेवक उसके पैरों को धोनेवाला उपस्थित नहीं था । इस कारण अति विनीत चंदना खड़ी हुई। सेठ के वारण करने पर भी वह पितुभक्ति से सठ के पैरों को धोने लगी। उस समय उसका स्निग्ध श्याम और कोमल केशपाश अं से छुटा जाने से जलांकिल भूमि पर पड़ा। फलस्वरूप इस पुत्री का केशपाश भूमि के कादे से मलिन न हो-ऐसा विचारकर सेठ ने सहज स्वभाव से यष्टि से उसे ऊचा किया और बाद में चादर से बांध लिया। गौख पर बैठी हई मुलाने यह देखा । फलस्वरूप उसने यह विचार किया कि मैंने प्रथम जो तक किया था-वह बरावर मिलता है।
इस यौवन स्त्री का केशपाश सेठ ने स्वयं की मेल में बांधा है। यह वास्तव में पत्नीपन का प्रथम चिन्ह सचित होता है क्योंकि पिता का कार्य इस प्रकार करने का नहीं होता है इसलिए इस बाला का व्याधि की तरह मूलोच्छेद करना उचित है।
अस्तु यह निश्चय कर यह दुराशा डाकण की तरह उस समय की राह देखने लगी।
सेठ क्षण भर विश्राम कर फिर बाहर गया। इधर मला ने एक नापित को बुलाकर चंदना के मस्तिष्क को मंडित किया। तत्पश्चा उसके पैरों को बेड़ी में बांधा। क्रोध रूप राक्षस के वशीभूत हई मूला लता को हस्तिनी की तरह चंदना को बहुत ताड़ित किया।
तत्पश्चात् घर के एक दूर के विभाग ( ओरड़े ) में चन्दनाको पूरी तरह कपाट से बंधकर मुला ने स्वयं के परिवार को कहा -यदि श्रेष्ठि इस विषय में किसी प्रकार प्रश्न पूछे तो किसी को भी कुछ नहीं कहना है। यदि कोई कहेगा तो वह हमारे कोपरूप अग्नि में आहुति रूप होगा।
इस प्रकार नियंत्रणा कर मूला स्वयं के पियर चलो गयो।
सांयकाल सेठ अपने घर आया। चंदना को न देखकर-पूछा कि चंदना कहाँ है। चंदना के भय के कारण किसी ने भी उत्तर नहीं दिया। सेठ ने विचार किया कि हमारी वत्सा चंदना कुछ रमती होगी अथवा घर के ऊपर होगी।
इसी प्रकार रात्रि में वापस पूछा परन्तु किसी ने भी कुछ नहीं कहा। सरल स्वभाव बुद्धि वाले सेठ ने यह जिवन किया कि चंना सो गई होगी।
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